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________________ ૧૯૮ औपपातिवसूत्रे 4 I 3 इत्ता, भुंडा भविता, अगाराओ अणगारिय पव्वइया, अप्पेगइया अद्धमासपरियाया, अप्पेगडया मासपरियाया, एवं दुमासयपि गुप्त निधी निक्षिप्त धन प्रागासीत् तदपि कटीय = नि मार्य, उत्तरतापूर्वक दाण' दाना, 'दाइयाण' टायादेभ्य स्वगोनिकम्य 'परिभायत्ता' विभागो दत्त्वा च ' मुडा भक्त्तिा ' मुण्डा भूवा व्यत गिरोवनन, भारत क्रोधाद्यपनयनन च मुण्डिता भूत्वा पव्वइया' प्रजिता -- श्रमगा जाता हयर्थ । ' अप्पेगच्या ' अप्येके- केचिद् ' अद्धमासपरियाया ' अर्द्धमासपयाया विप्रागवस्थायागेन अब स्थान्तराssसौ पर्याय, स पर्यायो जन्मना दीक्षया चेति द्विविध, प्रथमो जमपर्याय, द्वितीयो दीक्षापर्याय अन दीक्षापर्यायो गृह्यते केचिदर्द्धमासाद् गृहातान्यमपयाया । " अप्पेगइया ' अप्येके - केचन, ' मासपरियाया ' मासपर्याया - मासाऽनधे कालाद् गृहीतश्रमणपर्याय | एवम् - अमुना प्रकारेण केचिद्विमासपर्याया, केचित् निमास द्रव्य था उसे भी बाहर निकाल कर, और उदारतापूर्वक उसे दान में व्यय करके तथा सगोनियों में विभक्त करके, मुडित हो- द्रव्यरूप से मस्तक लुचितकर एव भावरूप से क्रोधादिक का परिहार कर प्रब्रजित हुए थे । ( अप्पेगझ्या ) कितनेक ( अद्धमासपरियाया ) इनमे ऐसे थे जिन्हें दाक्षा ग्रहण किये केवल अर्धमास ही हुआ था । ( अप्पेगइया मासपरियाया एव दुमासपरियाया तिमासपरियाया जा एकारसमासपरियाया ) इसी प्रकार कितनेक ऐसे थे जिन्हे दीक्षा लिये हुए दो मास हुए थे, कितनेक ऐसे थे जिहे दीक्षा लिये ३ मास हुए थे, कितनेक ऐसे थे जिहे चार, पाच, उह, सात, आठ, नौ, दश एव ११ ग्यारह કાઢીને અને ઉદારતાપૂર્વક તેને દાનમા વ્યય કરીને તથા સગેત્રિમા વહેચી દઈને મુ ત થઈ દ્રવ્યરૂપથી મસ્તકને લુચિત કરીને તથા ભાવરૂપથી घाहिने छोडीने प्रत्रभित थया हुता ( अप्पेगइया ) नेटसारखे ( अद्धमास परियाया ) मा मेषा हुता भेगाने दीक्षा सीधाने मात्र अरो भहिना ४ थयो हतो ( अप्पेगइया मासपरियाया एन दुमासपरियाया तिमास परियाया जाव एक्कारसमासपरियाचा ) तेवी रीते डेंटला तेथेोभा मेवा ता જેઓને દીક્ષા લીધાને એક માસ થયા હતા, કેટલાએક એવા હતા કે જેઓને દીક્ષા લીધાને બે માસ થયા હતા, કેટલાએક એવા હતા કે જેઓને દીક્ષા લીધાને ત્રણમાસ થયા હતા, કેટલાએક એવા હતા જેમને ચાર, પાચ, છ, સાત, આઠ, નવ, ઇશ તેમજ અગિઆર મહિના થયા હતા ( अप्पेगइया
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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