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________________ पोयूषयपिणी-टीया सू १६ भगयन्महावीरस्वामियर्णनम् ७९ तारए बुद्धे वोहए मुत्ते मोयगे सव्वन्नू सव्वद रिसी सिव-मयलभित्ताद्यावर गस्मलित न प्रतिहतम्-अप्रतिहल, ज्ञानञ्च दर्शनञ्चेनि ज्ञानदर्शन, वरे श्रेष्ठ च ते ज्ञानान--वरनानन-केवनानकालदर्शन, अप्रतिहते वरज्ञानदर्शन-अप्रतिहतपरनानदर्गन, धरताति धर -अप्रतितरनानदर्शनयोर्धर -अप्रतिहतवरज्ञानदर्शनधर - आवग्णरहितका जानकारीनधारा। 'वियहन्उउमे' व्यावृत्तच्छद्मा-छाद्यतेआत्रियते केवनान- कानाद्या मनोऽननति उम-धातिककर्मन्द-ज्ञानावरणायादिरूप कर्मजातम्, त्यात्त-निवृत्त म यस्मात् स न्यावृत्तच्छया। 'जिणे' जिन - रागद्वेपानिजेता । 'जापए' जापफ -जापयति गगद्वेपादिगवून जयन्त भव्यजावगण धर्मदेशनादिना प्रेरयताति जापक । 'तिपणे ताग-स्वय “मारीघ तार्ग -उत्तीर्ण । 'तारए' तारक -तारयति-तरतोऽन्यान भव्यजावान् प्रेरयताति तारक । 'युद्ध' वुद्ध -स्वय परग ण्व वर=ष्ट हे जयात् प्रभु आपरगरहित केवलज्ञान, केवलदर्शन के धारक है। (वियहन्छउमे ) कालज्ञान एव कालाशनादिक जिसके द्वारा आवृत होते हैं वह यहा उद्म शन्स गृात नुआ है, अत इस दृष्टिसे 'छम' शब्द का अर्थ धातिक कर्म होता ह, यह छा प्रभुका आमासे मर्पया निवृत्त हो चुका है, इसलिये प्रभु यात्तछा है । (जिणे ) गगारिक अतरग गनुओं पर विजय पान से प्रमु जिन है। (जापए) जातनेवाले भयजोना को प्रभु ने अपनी धर्मदेशना द्वारा आत्मकन्याग क मार्ग का जोर गेरित किया, इसलिये प्रभु जापक-जितानेवाले है । (तिण्णे) ससारसमुद्र से पार होन का वजह से प्रभु स्वय तार्ण है। (तारए) भगवान ने समारसमुद्र स पार होन क इच्छापाले जीवो को प्रेरित किया इसलिये અન તજ્ઞાન તેમજ અન ત દર્શન અપ્રતિહત–નિરાવરણ તેમજ વર શ્રેષ્ઠ છે અર્થાત પ્રભુ આવરણરહિત કેવલમાન અને કેવલ દર્શનના ધારક છે (पियदच्छउमे) उपदान तभी उपस शनाहिन दास ढालयले તે અહીં દમ નાદથી લેવામાં આવેલ છે આમ એ દષ્ટિથી છ શબ્દનો અર્થ ઘાતિકડમ થાય કે આ છ% પ્રભુના આત્માથી સર્વથા નિવૃત્ત થયેલો छे भाटे प्रभु यावृत्त-म (जिणे) जाहि मत२ शत्रुमा ५२ विश्य भेगवायी प्रभु नि छ (जावण) व भव्य छवाने प्रमुख પિતાની ધર્મદેશના દ્વારા આત્મકલ્યાણના ભાગના તરફ પ્રેરિત કર્યા તે માટે પ્રભુ 448-0ताया (तिण्णे) समा२ समुदथी पार थवाना ४॥२॥ो प्रभु पात ती (तारण) मावाने ससार मभुदयी पार थाना 4 वान
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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