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________________ प्रियदर्शिनी टीका अ० ३ गा० ९ तिष्यगुप्तस्य निद्ववत्ये कारणम् ६७ वदा राजगृहे नगरे गुणशिले उद्याने चतुर्दशपूर्वधरोबसुनामक आचार्यः समागतः । तस्य विष्यगुप्ता नाम शिष्य आसीत् । स पूर्वाध्ययनतत्परः कस्मिंश्चिव समये आत्मप्रसादनामफ सप्तम पूर्व पठति, आत्मप्रवादनामक पूर्वमधीयानस्य तिप्यगुप्तमुनेरय नालापफः समायातः, तद् यथा____“एगे भते जीनपएसे जीवेत्ति वत्तव्य सिया ? णो इणढे समढे । एव दो तिष्णि० जाव दस सखेज्जा। असखेज्जा भते ! जीपएसा जीवत्ति वत्तव्य सिया ' णो इणटे समढे। एगपएमूणे वि ण जीवे नो जीवेत्ति वत्तव्य सिया। से केण नटेण ? जम्हा ण कसिणे पडिपुण्णे लोगागासपएसतुल्ले जीवे जीवेत्ति वत्तव्य सिया ?, से तेणटेणं " इति ॥ __ अय द्वितीय निहवतिष्यगुप्तकी कथा कही जाती है, वह इस प्रकारसे है - भगवान महावीर को केवलज्ञान की उत्पत्ति होने पर जय सोलह १६ वर्ष व्यतीत हो गये तर राजगृह नगर में गुणशिलनामक उद्यान में चौदह पूर्वधारी वसु नाम के आचार्य आये। इनके शिष्य तिष्यगुप्त नाम के थे। ये पूर्वो के अध्ययन करने में तत्पर थे, किसी समय जब ये सातवा आत्मप्रवाद पूर्व पढ़ रहे थे उस समय इनको उसका यह सूत्रालापक पढने में आया, वह यह है “एगे भते जीवपएसे जीवेत्ति वत्तव्य सिया? णो इणद्वे समझे। एव दो तिणि जाव दस सखेज्जा असखेज्जा भते! जीवपऐसा जीवेत्ति वत्तव्य सिया' णो इणठे समहे। एगपएसूणे वि ण जीवे नो जीवेत्ति वत्तव्य सिया? से केण अद्वैण' जम्हा ण कसिणे पडिपुणे હવે બીજા નિવ તિષ્યગુમની કથા કહેવામાં આવે છે તે આ પ્રકારની છે - ભગવાન મહાવીરને કેવળજ્ઞાનની ઉત્પત્તિ થયાને જ્યારે સોળ વર્ષ વીત્યા ત્યારે રાજગૃહ નગરમાં ગુણશિલ નામના ઉદ્યાનમાં ચૌદપૂર્વના ધારક એવા વસુ નામના આચાર્ય આવ્યા એમને તિષ્યગુપ્ત નામના શિષ્ય હતા તે પૂર્વેના અધ્યયન કરવામાં તત્પર હતા ! એક સમય જ્યારે તે સાતમું આત્મપ્રવાદ પૂર્વ ભણી રહ્યા હતા એ વખતે એને સાતમા પૂર્વનું સૂત્રાલાપક વાચવામાં આવ્યું તે આ છે – " एगे भते जीवपएसे जीवेत्ति वत्तव्य सिया? णो इणढे समट्टे ! एवं दो तिष्णि. जाव दस संखेज्जा असखेजा भते 'जीवपएसा जीवेत्ति वत्तव्य सिया' णो इण२ समटे। एगपएसूणे विण जीवे नो जीवेत्ति वत्तव्य सिया ' से केण अद्रुण ? जम्हाण कसिणे
SR No.009352
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages961
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size28 MB
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