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________________ प्रियदर्शिनी टीका भ० ३ गा ८ मनुष्यत्वलामेऽपि धर्मश्रवणस्य दोलभ्यम् १३९ कस्यचिद् विशिष्टपुण्यस्योदयेन मानुपर लाभेऽपि श्रुतिदुर्लभेत्याहमलम् माणुस्स विग्गह लधु, सुई धम्मस्स दुल्लहा । ज सोची पडिवैजति, तंव 'खतिमहिसय ॥८॥ छाया-मानुष्य विग्रह लब्धा, अतिधर्मस्य दुर्लभा। . य श्रुत्वा प्रतिपयन्ते, तपः क्षान्तिम् अहिंस्रताम् ।। ८॥ टीका-'मागुस्स ' इत्यादि । मानुष्य-मनुष्यभवसम्बन्धिन, विग्रह-शरीर, लन्ना-माप्य, धर्मस्य= मानुष्य-मनुष्यभवसम्मान श्रुतचारित्रलक्षणस्य, श्रुतिः अपण, दुर्लभा, यं धर्म श्रुत्वा, तपः अनशनादि द्वादशविधम् , इन्द्रियजय वा, शान्ति-कोपजयरूपा, उपलक्षणमेतन्मानादिजयस्यापि, अहिंसताम् अहिंसकत्वम् , अनेन प्रथमनतमुक्तम् , ददमप्युपलक्षणम्-मृपारादाद तादानमैथुनपरिग्रहविरमणस्य, प्रतिपद्यन्ते-माप्नुवन्तीत्यर्थः । धर्मस्य अवण हि मिथ्यानतिमिरमणाशक, श्रद्धाज्योतिःप्रकाशक, तत्त्वातच विवेचक, पीयूपपानमिव कहते है-"माणुस्स" इत्यादि। अन्वयार्थ-(माणुस्स विग्गर लद्ध मानुष्यक विग्रह लब्ध्वा) मनुष्यभव सवधी शरीर को पाकर भी (धम्मस्न सुई दुहा-धर्मस्य श्रुति. दुर्लभा) श्रुतचारित्ररूप धर्मका श्रवण दुर्लभ है। (ज सोच्चा-य श्रुत्वा) जिप्त धर्म को सुनकर प्राणी (तव खतिमहिंसय-तप. क्षान्तिम् अहिंस्रताम् ) अनशन आदि बारह १२ प्रकार के तप को, अथवा इन्द्रियनिग्रह को, क्रोध जयरूप क्षाति को, उपलक्षण से मान आदि कपाय के विजय को, तथा अहिंसक भाव को, उपलक्षण से मृपावाद, अदत्तादान, मैयुन एव परि ग्रह से विरमणरूप व्रत को (पडिवज्जति-प्रतिपद्यन्ते) प्राप्त करते हैं। धर्म का श्रवण जीव के मिथ्यात्वरूप तिमिर का विनाशक, श्रद्धारूप ज्योति का प्रकाशक, तत्व अतत्त्व का विवेचक, अमृतपान के समान 'माणुस्स' त्यादि मन्वयार्थ-माणुस्स विग्गह लद्ध-मानुष्यक विग्रह लब्ध्वा मनुष्यनसमधी शशने भगवान ५ धम्मस्स सुई दुल्लहा-धर्मस्य श्रुति दुर्लभा श्रुत यारि३३५ धमनु श्रवण दुसन छ ज सोच्चा-य श्रुत्वा धर्म सामजीन प्राणी तव सतिमहिंसय-तप क्षान्तिम् अहिवताम् अनशनाहि ॥२ १२ घारना तपन અથવા ઈન્દ્રિયનિગ્રહને, ક્રોધજ્યરૂપ, ક્ષાતિને ઉપલલણથી માન આદિ કવાયના વિજયને તથા અહિંસક ભવને ઉપલક્ષણથી મૃષાવાદ, અદત્તાદાન, મિથુન અને परियडया पारभय ३५ प्रतन पडिवज्ज ति-प्रतिपद्यन्ते प्रास ४२ छ यमन શ્રવણ જીવને મિથ્યાત્વરૂપી અંધકારને નાશ કરનાર, શ્રદ્ધારૂપ તિને પ્રકા
SR No.009352
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages961
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size28 MB
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