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________________ प्रियदर्शिनी टीका अ० २ गा० ३८ सत्कारपुरस्कारपरीपहजय अथैकोनशिवितम सत्कारपुरस्कारपरीपहजय माहमूलम्-अभिवायमन् हाणं, सामी कुजा निमंतण । - जे ताई पंडिसेवंति, ने तेसिं पीहए मुंणी ॥३८॥ छाया-अभिवादम् अभ्युत्थान, स्वामी कुर्यात् निमन्त्रणम् । ये तानि मतिसेवन्ते, न तेभ्यः स्पृहयेत् मुनिः ॥ ३८ ॥ टीका-'अभिवाय०' इत्यादि। स्वामी राजादिकः, अभिवादम्-अभिवादनम्-'शिरोनमनचरणस्पर्शनादिपूर्वकमभिवादये प्रणमामी'त्यादिवचनरूप पुरस्कार, तथा-अभ्युत्थानम्-अभिमुखमुस्थानम्-ससभ्रममासन परित्यज्योत्थानरूप पुरस्कार च, तथा-निमन्त्रणम्आहारादिग्रहणाय प्रार्थनम् , ' अद्य मद्गृहे भिक्षा ग्रहीतव्या' इत्यादिवचनरूप जन्ममरण से सदा के लिये विमुक्त हो गये । इसी तरह अन्य मुनियों को भी जल्लपरीपह सहन करना चाहिये ॥ ३७॥ अब उन्नीसवा सत्कारपुरस्कारपरोपहजय को सूत्रकार करते हैं'अभिवाय-इत्यादि। अन्वयार्थ-यदि (सामी-स्वामी) राजा आदि (अभिवाय अन्भुहाण निमतण-अभिवादन अभ्युत्थानम् निमत्रण) अभिवादन-अपने मस्तक को झुकाकर चरणस्पर्श करते हुए नमस्कार करें, तथा अभ्युस्थान-मुनि को आते देखकर बडे आदरभाव से अपने आसन का परित्याग कर वे उठ खडे हों और मुनि के सन्मुख जावें, तथा-निमव्रण-आहार आदि के ग्रहण करने के लिये प्रार्थना करें कि महाराज! आज आप मेरे घर पर भिक्षा ले, इस प्रकार अभिवादन, अभ्युत्थान કલ્યાણ સાધીને જન્મમરણથી સદાને માટે વિમુક્ત બની ગયા આ રીતે અન્ય મુનિઓએ પણ જળપરીષહને સહન કરવું જોઈએ છે ૩૭ હવે ઓગણીસમે સત્કારપુરસ્કારપરીષહ જીતવાનું સૂત્રકાર કહે છે 'अभिवाय 'त्यादि भ-पयार्थ-यहि सामी-स्वामी २० बोरे अभिवाय अभुट्ठाण निमतण-अभिवादन अभ्युत्थानम् निमत्रणम् पोताना भरत ने जुवी य श ४री नभ७२ रे, તથા અભ્યસ્થાન-મુનિને આવતા જોઈને ઘણું આદરભાવથી પોતાના આસનને પરિત્યાગ કરી તે ઉઠીને ઉભા રહે અને મુનિની સામે જાય, તથા નિમત્રણઆહાર આદિ ગ્રહણ કરવા માટે પ્રાર્થના કરે કે, મહારાજ! આજ આપ મારા घरे मिक्षा त्यो मारे मलिवाहन, सयुत्थान तथा निमत्र कुज्जा-कुर्यात्
SR No.009352
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages961
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size28 MB
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