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________________ - - - - - - ४७८ ___ उत्तरायणमा वर्षास पा, परितापेन-उष्णस्पर्शन, इत्यर्थे तृतीया । पङ्केन वा अस्वेदादाद्रीभूतेन मलेन वा, रजसा वा-परिशुष्य, काठिन्य प्राप्तेन मछेन वा, यद्वा-रजसा-धूल्या, क्लिनगाना व्याप्तदेहः, सन् सात-सुख समाश्रित्य न परिदेवयेत्-"हा! मममलापगमः कथ कदा वा भविष्यती" - वि कृत्वा न विलपेत् , विलापं न कुर्यादिति भावः ॥ ३६ ॥ मे और वर्षाकाल मे (परितावेण-परितापेन ) उष्णस्पर्श द्वारा आये हुए (पकेण व-पडून वा) प्रस्वेद द्वारा गीले हुए मैल से (रण्ण वारजसा वा) या पसीने में ससक्त धूलि से (किलिण्णगा-क्लिनगात्र) व्याप्त शरीर होने पर भी (साय नो परिदेव-सात नो परिदेवयेत्) " हा मेरे इस मैल का निवारण कैसे और कय होगा" ऐसा विचार कर पिलाप नही करे । किन्तु उस हालत में उस परीषह को अच्छी तरह सहन करे, इसका नाम जल्लपरीपह जय है। भावार्थ-ग्रीष्मकाल मे या वर्षाकाल में अधिक गर्मी पड़ने से शरीर मे अधिक पसीना आया करता है। उससे शारीरिक मैल दीला पड जाता है । रगडने से वह चिपका हुआ मैल शरीर से अलग हो जाता है । पुन उसी स्थान पर उड़ी हुई रज आकर लग जाती है। उससे शरीर में आकुलता होती रहती है। इस आकुलता से न घरा कर जो मुनि उस मैल से ससक्त होने का परीषह सहन करते हैं उसोका नाम जल्लपरीपहजय है। साधु स्वप्न में भी यह विचार न ग्रीष्मे नानी ऋतुमा तथा वा-या शरमन मा परितावेण-परितापेन GORAN द्वारा मासा पकेण व-पड्केन वा ५२वा द्वारा लणे भेलया रएण वा-रजसा वा २०१२ ५२सेवामा मगेस धूथी किलिण्णगाए-क्लिन्नगात्र व्याप्त शरीरमनवा छताप साय नो परिदेवए-सात नोपरिदेवयेत् भा२ मा मेनु निवारण કેમ અને કયારે થશે” એ વિચાર કરી વિલાપ ન કરે પરંતુ તેવી હાલતમાં તે પરીષહને સારી રીતે સહન કરે તેનું નામ જલમલ પરિષહ જય છે ભાવાર્થ-ગ્રીષ્યકાળમાં યા વર્ષાકાળમા અધિક ગરમી પડવાથી શરીરમાં અધિક પરસેવે વળે છે તેનાથી શરીર ઉપર મેલ ઢીલા પડે છે ચોળવાથી તે ગ્રેટેલ મેલ શરીરથી છુટા પડે છે ફરી એજ સ્થળે ઉડતી રજ આવીને ચાટે છે તેનાથી શરીરમાં આકુળતા થતી રહે છે આથી એ આકુળતાથી ન ગભરાતા જે મુનિ તે મેલને સ સક્તપરીષહ સહન કરે છે એનું નામ જલમહલ
SR No.009352
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages961
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size28 MB
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