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________________ प्रियदर्शिनी टोका अ० २ सू० १ दाविंशतिपरीपहप्रस्ताव ___ २६७ टीका-श्रीमुधर्मा स्वामी श्रीजम्यूस्वामिन प्रति कथयति- सुय मे आउस!' इत्यादि । हे आयुष्मन् ! भगरता ज्ञानादियुक्तेन, तेन-तीयकरण, एवम्बल्यमाणाप्रकारेण, यत् पाख्यात सफलजीवभापापरिणामिन्या भापया कथितम् , उक्तञ्च देवा टैगों नरा नारी, शराथापि शारीम् । तिर्यञ्चोऽपि हि तैरश्चों, मेनिरे भगद्गिरम् ॥ १॥ तत् , मे मया, श्रुतम् । भगवत्कथितमेवार्थ तवाग्रे वर्णयामीति भावः । अस्य सविस्तर व्याख्यान जिज्ञासुभिराचारागमनस्य मत्कृताचारचिन्तामणिटीकाया द्रष्टव्यम् । यद्वा-'आउसतेण' इत्येक पद, 'मया' इत्यस्य विशेषणम् । श्री सुधर्मा स्वामी श्री जबूस्वामी से कहते है-(आउस-आयुष्मन्) कि हे आयुष्मन् । जम्बू ! (तेण भगवया एवमक्खाय-तेन भगवता ण्व आख्यातम् ) ज्ञानादि गुणों से युक्त उन तीर्थंकर भगवान् श्री महावीर स्वामी ने वक्ष्यमाण प्रकार से कहा है वह (मे मुय-मया श्रुतम् ) मैंने सुना है वही मैं कहता हु । प्रभु की भापा सर्वभापामय होती है, __ कहा भी है-"देवा दैवी" इत्यादि ।। प्रमु की वाणी को देव, मनुष्य, आर्य, अनार्य, तिर्यञ्च, सभी अपनी अपनी भाषा में समझते हैं। इस सूत्र का विस्तृत विवेचन आचाराग सूत्र की आचारचिन्तामणि टीका में किया गया है, इसलिए जिज्ञासु को वहा से देख लेना चाहिये। "आउस तेण" इस पद की सस्कृत छाया" आयुष्मन् तेन" ऐसी न श्री सुध स्वाभी, श्री स्वामीन डे छे , आउश-आयुष्मन् । मायुष्मन् कम्मू। तेण भगवया एवमक्खाय-तेन भगवता एव आप्यातम् सानाहि ગુણેથી યુક્ત એવા તીર્થ કર ભગવાન શ્રી મહાવીર સ્વામીએ વયમાણ પ્રકા २थी धु छ मे सुय-मया श्रुतम्-ते में सामन्यु छे से हुई छु प्रभुनी भाषा समापामय डाय छ उखु ५५ छदेवा देवी इत्यादि પ્રભુની વાણીને દેવ, મનુષ્ય, આર્ય, અનાર્ય, તિર્ય ચ, સઘળાપિત પિતાની ભાષામાં સમજે છે આ સૂત્રનું વિસ્તૃત વિવેચન આચારાગસૂત્રની આચારચિંતામણી ટીકામાં ४३६ छ भोट शासुभे त्याची नवु नये “आउस तेण" मे पहनी सकृत छाया “ आयुप्मन् तेन" अपी न यता आउसतेण" "आवसता"
SR No.009352
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages961
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size28 MB
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