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________________ २२७ मियदर्शिनी टोका अ० १ गा ३१ एपणासमितिविधि 'अल्पकौकुच्यः' इति विशेषणेन सयमलज्जा सूचिता ॥ ३० ॥ सप्रति एपणासमितिविषय विनयमाहमूलम्-कालेण निखमे भिक्खू , कॉलेण ये पडिकमे । अर्काल च विवंज्जित्ता, काले कॉल समायरे ॥३१॥ छाया-कालेन निष्फ्रामेद् भिक्षुः, कालेन च प्रतिक्रामेत् । ___ अकाल च विनये, काले कालं समाचरेत् ॥३१॥ टीका-'कालेण ' इत्यादि कालेन-काले-देशकालानुसारेण भिक्षायोग्यसमये एव भिक्षुः साधुनिष्कामेत्-भिलार्य निर्गन्छेत्-काले भिक्षार्थ निर्गमने सनिवेशनिन्दासात्मक्लेशादि दोपसभवात्। च-पुन. कालेन-काले उचित समय एव प्रतिक्रामेत्-भिक्षाटनात् पतिनिवर्तत, अल्पलाभे अलाभे वा लाभाशया कालमतिक्रम्य न चिरकालमटेदिति भाव । व्युत्सर्ग तपका तथा 'अल्पकौकुच्य.' इस पद द्वारा सयम की लज्जा के निर्वाह का सूचन किया है ॥ ३० ॥ अब एपणासमितिविपयक विनयधर्मका सूत्रकार कथन करते हैं-'कालेण' इत्यादि. __अन्वयार्थ--(कालेण-कालेन) देश काल के अनुसार भिक्षायोग्य समय में ही (भिक्खू-भिक्षु) साधु को (निक्खमे-निष्कामेत्) भिक्षा के लिये अपने स्थान से जाना चाहिये। अकाल मे भिक्षा के लिये निकल ने मे सनिवेश-गाव की तथा साधु की निन्दा होती है, इस से आत्मा को क्लेशादिक दोपो को सभावना रहती है। तथा (कालेण य पडिकमे कालेन च प्रतिक्रामेत् ) उचित समय मे ही वह वापिस भिक्षाटन से लौट आवे, ऐसा नही करना चाहिये कि भिक्षा का अल्पलाभ हो अथवा એ પદ દ્વારા સયમની લજજાના નિર્વાહનું સૂચન કરેલ છે હવે એપણાસમિતિવિષયક વિનયધર્મનું સૂત્રકાર કથન કરે છે વહેળ૦ ઈત્યાદિ Arqयार्थ-कालेण-कालेन देश अनुसार मिक्षाना योज्य सभयेन, भिक्खु-भिक्षु साधुये निक्समे-निष्कामेत् मिक्षा भाटे पाताना स्थानीय અકાળમા ભિક્ષા માટે નિકળવામા ગામની તથા સાધુની નિદા થાય છે એથી આત્માને से होपोनी ससपना २७ छ, तथा कालेण य पडिकमे-कालेन च प्रतिकामेत् अथित समयमा ४ ते भिक्षाटनथी छ। मेवुन ४२७ જોઈએ કે ભિક્ષાને અ૫ લાભ હોય અથવા અલાભ હેાય તે તે લાભની
SR No.009352
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages961
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size28 MB
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