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________________ - - २०२ उत्तराध्ययनले मूलम्-न लवेज पुठो सावज्ज, न निरहन मम्मय । अपणहा परंडा वी, उभयस्सतरेण वी ॥ २५॥ छाया-नळपेत् पृष्टः सावध, न निरय न मर्मगम् । आत्मार्य परार्थ गा, उभयस्य जन्तरेण गा ॥ २५ ॥ टीका-'न लवेज्ज ' इत्यादि । पृष्टः केनचित् , सापद्य-आयेन-पापेन सह वर्तते इति सावद्य-सदोप वचन न लपेत्न पदत् , सावग्रवचन हि रागद्वेपादिदुर्गुणनिधान सकलासपनिदानम्, आत्मममाधिविधुविधुतुदस्वरूप, गुणशक्षसमूलोन्मूलने प्रचण्डझझानातरूप, पायविपल्लीनर्धक, परजीपनिकायोपमर्दकम् । न लवेज्ज इत्यादि अन्वयार्थ-(पुटो सावज्ज न लवेज्ज-पृष्टः सावद्य न लपेत्) किसी के द्वारा पूछे जाने पर सावद्य-पापयुक्त वचन नही बोलना चाहिये । (न निरहन मम्मय-न निरर्थक न मर्मग) निरर्थक वचन नही बोलना चाहिये । मर्म उद्घाटक वचन नहीं बोलना चाहिये। (अप्पणहा परछा वा उभयस्सतरेण वा सावज न लवेज्ज-आत्मार्थ परार्थ वा उभयस्यान्तरेण वा सावध न लपेत् ) अपने निमित्त अथवा पर के निमित्त तथा उभय-स्व पर के निमित्त और विना प्रयोजन के (व्यर्थ) भी सावध वचन नहीं बोलना चाहिये । यो कि-सावद्य वचन राग द्वेष आदि दुर्गुणों का निधान है, समस्त आत्रवों का निदान-कारण है, आत्मसमाधिरूप चन्द्रमा को ग्रसन करने मे राहुसमान है, गुणरूप वृक्षी को जड़ से उखाड ने में प्रचण्ड झझावात समान है, तथा कषाय न लवेज त्याह मन्याथ-पुटो सावज्ज नरवेज्ज-प्रप्र सावा न लपेत-नि। ५७वाया पापयुइत सावध वयनमासनसनही न निरट्र न मम्मय-न निरर्थक नमर्मग નિરર્થક વચન બોલવું ન જોઈ અને મમઉદ્ધારક વચન બોલવું ન જોઈએ अप्पणट्ठा परद्वावा उभयस्सतरेण वासानज्ज न लवेजआत्मार्थ परार्थं पा उभयस्यान्तरेण वा सावध न लपेत्--- પિતાના નિમિત્ત અથવા બીજના નિમિત્ત તથા અરસપરસના નિમિત્ત અને વગર પ્રોજન (પથ) સાવદ્ય વચન ન બેલવા જોઈએ કેમકે, સાવધ વચન રાગ દેશ આદિ દુગુ નુ નિધાન છે, સમસ્ત આશ્રવનું કારણ છે, આત્મસમાધિરૂપ ચ દ્રમાનું ગ્રહણ પ્રસિત કરવામાં રાહ સમાન છે, ગુણરૂપ વૃક્ષને જડથી ઉખેડવામાં પ્રચંડ ઝઝાવાત સમાન છે તથા
SR No.009352
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages961
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size28 MB
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