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________________ १५२ उत्तरायपनस्त्रे ____ अपद-निर्विभक्तिकशब्दोचारणरूपम् । यथा-मुनिर्विहरतीति वक्तव्ये मुनि निहरतीति कथनम् ॥ १८॥ स्वभावहीन-पत्र वस्तुस्वभागोऽन्यथा स्थितोऽन्यथाऽभिधीयते तत् । यया 'शीतो पनि 'रूपरदाफाशम् ' इत्यादि ।। १९ ।। व्यवहित-या प्रकृतमुक्त्वाऽप्रकृत विस्तरतोऽभिधाय पुनः प्रकवमुच्यते तद् । यथा-हेतुकथामधिकृत्य सुप्तिदन्तपदलक्षणप्रपञ्चमर्थशास्त्र वा अभिधाय पुनर्हेतुवचनम् । यथा वा-दया प्रस्तुत्य शीलस्य विस्तरवर्णन विधाय पुनर्दयावर्णनम् ॥२०॥ अधिक जो युक्तियुक्त नहीं है-उस को मानना जैसे-जीवराशि अजीवराशि ये दा ही राशिया हैं । पर ऐसा कहना कि "नो जीव नो अजीव" इस प्रकार तीसरा राशि का वर्णन करना अनभिरित दोप है ॥१७॥ विभक्ति रहित शब्द वाला सूत्र अपद दोप वाला माना जाता है जैसे "मुनिविहरति" यहा हुआ है। क्यों कि सुवन्त एव तिडन्त की पद सज्ञा रोती है। निर्विभक्तिक शब्द पद सज्ञक नहीं होता। अतः इस प्रकार का शब्द वाला सूत्र इस दोप से विशिष्ठ माना जाता है। "मुनिर्विहरति" यह शुद्ध है ॥ १८॥ जिस मूत्र द्वारा वस्तु का यथावस्ति स्वरूप निरूपित न होकर अन्यथारूप मे निरूपित किया जाता है वहा स्वभावहीन दोप होता है । जैसे-अग्नि को शीत एव आकाश को रूपी कहना ॥ १९ ॥ जहाँ प्रत अर्थ को छोडकर अप्रकृत का विस्तार से वर्णन करके पुनः प्रकृत अर्थ का वर्णन किया जाता है वहा व्यवहित नाम का दोप होता है-जैसे-हेतु के लक्षण के कथन अवसर ચુત નથી તેને માનવી જેમ-જીવરાશી અજીવરાશી એ બે રાશી છે, પણ सभ डेवु नो जीव-नो अजीव २ रे श्री राशीतु वर्णन २७ અનભિહિત દોષ છે (૧૭) વિભક્તિરહિત શબ્દવાળા સૂત્ર અપદ દોષવાળા भनाय छ म " मुनिविहरति " माड येथे भरे, सुमन्त मनतिजन्नी પદ સજ્ઞા થાય છે નિવિભક્તિક શબ્દ પદ સજ્ઞક થતું નથી એટલે આ ४२. शाणा सूत्राषियी विशिष्ट भानवामा साव छ 'मुनिर्विहरति" આ શુદ્ધ છે (૧૮) જે સૂત્રથી વસ્તુનુ યથાવસ્થિત સ્વરૂપ નિરૂપિત ન થતા બીજા રૂપમાં નિરૂપિત કરવામા આવે છે ત્યા સ્વભાવહિન દોષ હોય છે જેમ અગ્નિને શીત અને આકાશને રૂપી કહેવું (૧૯) જ્યાં પ્રકૃતિ અર્થને છેડીને અપ્રકૃતનુ વિસ્તારથી વર્ણન કરીને પુન પ્રકૃત અર્થનું વર્ણન કરવામા આવે છે ત્યા વ્યવહિત નામને દેષ લાગે છે–જેમ હેતુ લક્ષણના કથન
SR No.009352
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages961
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size28 MB
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