SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 215
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३६ उत्तराभ्यपनसून आसनस्थितस्य शिप्यस्य विनयमाह-- मलम्-आलेवंते लवते वा, न निसिन कयाइवि।। चइऊंण आसंण धीरों, ओ जैत्त" पडिस्सुणे ॥२१॥ छाया-आलपति ल्पति वा, न निपीदेत् कदाचिदपि । त्यस्त्वा आसन धीरो, यतो यत्तत् प्रतिशृणुयात् ॥२१॥ टीका-'आलवते ' इत्यादि। गुरौ आलपति-समद् वदति सति, कार्यस्य लघुत्वात्सत्कयनमिति भावः, यथा-आसनमानीयताम् , पारण क्रियताम् , इत्यादि, वा-अथवा गुरौ लपतिपुनः पुनः कथयति सति ग्रहणासेवनाशिक्षाया सपरयाटत्यकार्य च, कार्यस्य बृहचादत्यावश्यकत्याच्च पुनः पुनः कयनमिति भावः, शिष्यः कदाचिदपि न निपोदेवआसनाऽऽसीनो न भवेत् । अय भावः-यदि गुरुः किंचित् कार्य सकद्वा, पुनः पुनर्वा, उपतिष्ठेत् ) " मत्थे ण वदामि " इस प्रकार विनयद्योतक शब्द का न्यवहार करता हुआ सदा अपने गुरु के समक्ष उपस्थित होवे । भावार्थ-गुरुमहाराज जिस तरह अपने ऊपर प्रसन्न हो उत्तम शिष्य का कर्तव्य है कि वह उस प्रकार प्रयत्नशील रहे ॥ २०॥ 'आलवते. ' इत्यादि । अन्वयार्थ (आलवते लवते वा कयाइ चि न निसिज्जा-आलपति लपति वा कदाचिदपि न निपीदेत् ) उत्तमशिष्य-विनयशीलशिष्य का कर्तव्य है कि जब गुरु महाराज किसी कार्य को करने के लिये एक ही बार में कहें या बार २ भी कहें तो उस समय उसे कभी उस कार्य को करने के लिये आना कानी नहीं करनी चाहिये। अर्थात्-उस समय वह शिष्य चाहे अपने आसन पर भी પિતાના ગુરુની સમક્ષ જતી વખતે મળે ઘનિ આ પ્રકારને વિનય ઘાતક શબ્દને વહેવાર કરતે રહે ભાવાર્થ–ગુરુદેવ જે રીતે પોતાના ઉપર પ્રસન્ન થાય એ પ્રયત્ન ४२वानु उत्तम शिष्यतु उतव्य छ, मन से रेत प्रयत्नशील २ ।। २० ॥ __ अग्लवते. त्यादि मक्या-आलवते ल्वते वा कयावि न निसिज्जा-आलपति लपति वा कदाचिदपि न निपीदेत् उत्तम शिष्य-विनयशील शिष्यनु तव्य છે કે જ્યારે ગુરુ મહારાજ કઈ કામ કરવા માટે એક જ વખતે કહે દે અથવા વાર વાર કહે તે સમયે તેણે કદિ પણ એ કાર્યને કરવા માટે આનાકાની કરવી ન જોઈએ અથએ વખતે એ શિષ્ય ભલે પોતાના
SR No.009352
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages961
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy