SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 350
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३५४ निरयावलिकास्त्रे चन्दते नमस्यति, वन्दित्वा नमस्यित्वा एवमवादीत-श्रद्दधामि खलु भदन्त ! निग्रन्थं प्रवचनं यथा चित्तो० यावत् श्रावकधर्म प्रतिपद्यते, प्रतिपद्य प्रतिगतः । तस्मिन काले तम्मिन् समयेऽहतोऽरिष्टनेमेरन्तेवासी वरदत्तो नाम अनगारः उदारो यावद् विहरति । ततः स बरदत्तोऽनगारो निपधं कुमारं पश्यति, दृष्ट्वा जातश्रद्रो यावत् पर्युपासीन एवमवादी-अहो ! खलु भदन्त ! निपधः कुमार इष्ट इष्टरूपः कान्तः कान्तरूपः, एवं प्रियो० मनोज्ञो० मनोऽमो मनोऽमरूपः सोमः सोमरूपः प्रियदर्शनः सुरूपः । निपधेन भदन्त ! कुमारेण अयमेतद्रूपा मानुप्यऋद्धिः कथं लब्धा ? कथं प्राप्ता ? पृच्छा यथा मर्याभस्य । और आदक्षिण प्रदक्षिण करके वन्दन नमस्कार किया। अनन्तर धर्म सुनकर उसे हृदयसे अवधारण कर वन्दन नमस्कार कर इस प्रकार कहने लगा-हे भदन्न ! मैं निर्ग्रन्थ प्रवचन पर श्रद्वा करता हूँ। इसके बाद वह चित्त प्रधानके ममान यावत् श्रावक धर्मको स्वीकार कर अपने घर लौट आया। उम काल उस समयमें अर्हत् अरिष्टनेमिके अन्तेवासी उदार प्रधान ओजस्वी वरदत्त नामके अनगार धर्मध्यान करते हुए एकान्तमें बैठे थे। भगवान् के समीप आये हुए निपध कुमारको देखकर उन्हें अद्धा जिज्ञासा और कौतूहल उत्पन्न हुआ और उन्होंने भगवानसे इस प्रकार पूछा हे भदन्त ! वह निपध कुमार इष्ट है, इष्टरूप है, कान्त है, कान्तरूप है। इसी तरह प्रिय है मनोज्ञ है मनोऽम (मनको अच्छा लगनेवाला) है, सोम है, सोमरूप है, प्रियदर्शन है, सुरूप है। પ્રદક્ષિણા કરીને વદન નમસ્કાર કર્યા પછી ધર્મનું શ્રવણ કરે તેને હૃદયમાં અવધારણ કરીને વદન નમસ્કાર કરી આ પ્રકારે કહ્યુ - હે ભદન્ત ! હું નિન્ય પ્રવચન ઉપર શ્રદ્ધા રાખું છું ત્યાર પછી તે ચિત્ત પ્રધાનની પઠે શ્રાવક ધર્મનો સ્વીકાર કરીને પિતાને ઘેર પાછા આવ્યું તે કાળ તે સમયે અહંત અટિનેમિના અનંતેવાસી ઉદાર પ્રધાન ઓજસ્વી વદત્ત નામે અનગાર ધર્મધ્યાન કરતા એકાન્તમાં બેઠા હતા. ભગવાનની પાસે આવેલા निषधकुमार ने इन तने ज्ञासा मन तुse Sपन थयु गने अगवानने मा प्रभारी पच्यु .--3 महन्त ! निपधकुमार ४ट छे ४५८३५ छ, आन्त छ, भना , मनोरम छ, सोम छ, सोम३५ प्रियानि छ,९३५ छे....
SR No.009351
Book TitleNirayavalikasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages437
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy