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________________ सुन्दरबोधिनी टीका वर्ग ३ अ.३ सोमिल ब्राह्मणवर्णनम् २३७ तथा कुशकलशहस्त इति, शरकेण-निर्मन्थनकाष्ठेन अरणि घर्षणीयकाष्ठं मथ्नातिघर्षयति, अग्निं संधुक्षते-फूत्करोति । 'समादहे' समादधाति स्थापयति, अत्र लटोऽथ लिङ सौत्रत्वात् , तद्यथा तानि अङ्गानि यथा, चरु हवनाथ दुग्धेन सह तण्डुलादिहविघुताभिघारितं साधयति=सम्पादयति, रन्धयतीति यावत् ॥५॥ दर्भ और कुश एक तरफ रखता है और बालूसे वेदी बनाता है। पादमें शरक-निर्मन्थन काष्ट, जो अग्निके लिए घिसा जाता है; अरणि-निर्मथ्यमान काष्ठ, जिसपर अग्नि उत्पन्न करनेके लिए शरक धिसा जाता है, उन्हें तैयार करता है। अनन्तर शरक के द्वारा अरणि का मन्थन करता है, और मन्थन कर उससे अग्नि निकालता है फिर फूककर उसे सुलगाता है। उसमें समिध काष्ठ डालकर उसे प्रज्वलित कर अग्निके दाहिने पाच (जीमणी बाजू) में सात अङ्गो (वस्तुओ) का स्थापन करता है, वे ये हैं (१) सकत्थ तापसोका एक उपकरण विशेष, (२) वल्कल, (३) स्थान, (४) शय्या भाण्ड, (५) कमण्डल, (६) लकडीका दण्डा तथा (७) आत्मा अर्थात् अपनेको अग्निके दाहिनी तरफ रखे। - इसके अनुसार सब वस्तुओंको यथास्थान रखकर वह मधु घृत और तण्डुलसे हवन करता है। चरु (घीसे चुपडकर हवनके लिये पकाने योग्य चावल) को सिझाता है । बलि-वैश्वदेव (नित्य यज्ञ) करता है । बादमें अतिथिको भोजन कराकर स्वयं भोजन करता है ।।५।। વેદી બનાવે છે પછી શર=નિર્મથન કાષ્ઠ, જે અગ્નિ માટે ઘસવામાં આવે છે, તે तथा अरणिनिर्भयमान 18, 21 S५२ मनि Gaua ४२वा माटे 'शरक' घसाय છે તે તૈયાર કરે છે. અને શરક દ્વારા અરણીનું મન્થન કરે છે મથન કરી તેમાથી અગ્નિ પ્રગટ કરે છે અને ફક મારી તેને સળગાવે છે તેમાં સમાધીનાં કાષ્ઠ નાખીને પ્રજવલિત કરે છે અગ્નિ પ્રજવલિત કરીને અગ્નિની જમણી બાજુમાં સાત અને (वस्तु)स्थापन ४२ छे-रेवा: - (१) सत्य-तापसोनु मे 6५४२१४ विशेष, (२) १६४८, (3) स्थान, (४)शय्यामा, (५) , (6) डीनो तथा (७) मात्मा अर्थात् पाताने अभिननी જમણી બાજુએ રાખે. આ પ્રમાણે બધી વસ્તુઓને યથાસ્થાને રાખી મધ, ઘી તથા ચોખાથી અગ્નિમાં હવન કરે છે વઘીથી ચેપડીને હવનને માટે રાધવાના ચાવલ સીઝાવે છે ચરૂને सिावी वलि वैश्वदेव (नित्य यज्ञ) ४२ छे. पछी मतिथिन माडी पोत सामनरेछ (५)
SR No.009351
Book TitleNirayavalikasutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages437
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size22 MB
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