SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 876
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७८६ नदीसत्रे 3 राष्ट्रस्य राजा एकदा कौतुकार्थं तत्समीपे त्रीणि वस्तूनि प्रेषितवान्- गूढं सूत्रम्गुप्तग्रन्थिमत्सूत्रम् १, समायष्टिः- समभागं काष्ठम् २, अलक्षितद्वारः समुद्रको जतुना लिप्तः ३ | मुरुण्डस्तानिवस्तूनि स्वपुरुषानाहूय दर्शयति न च तानि केनापि विदितानि ततो राजा कलाचार्यमाहूय पृच्छति - हे आर्य ! भवान् अस्य ग्रन्थिद्वारं जानाति ? ष्याचार्य आह— जानामि । इत्युक्वा तेन तदैव सूत्रमुष्णजले निक्षिप्तम्, ततस्तत्सूत्रमुष्णजलसंयोगेन निर्मलं जातम् मलापगमे सति लब्धः सूत्रस्यान्तः, ग्रन्थिभागोऽपि दृष्टः । यष्टिरपि जले निक्षिप्ता । ततो गुरुभागो मूलमिति विज्ञातम् । गुरुभागे एव ग्रन्थिर्भवति । समुद्रकोऽप्युष्णोदके क्षिप्तः, तेन सर्व जतु राज्य करता था । उसके पास किसी दूसरे राष्ट्र के राजा ने क्रीडानिमित्त तीन वस्तुएँ भेजी । उनमें एक गूढसूत्र था, जिसमें गांठ गुप्त थी ९ । दूसरी समभागवाली यष्टि थी जिसका मूल भाग गुप्त था २ । तीसरा लाख से अलक्षित द्वारवाला डिब्बा था ३ । मुरुण्ड ने इन तीनों चीजों को अपने निजी व्यक्तियों को बुलाकर दिखलाया परन्तु कोई भी इन के भेद को नहीं जान सका । बाद में कलाचार्य को बुलाकर राजा ने उस से पूछा- हे आर्य ! आप इस सूत्र के ग्रन्थिद्वार को जानते हैं । कलाचार्य ने कहा- हां जानता हूं । फिर उस कलाचार्य ने गर्मजल मंगवाकर उस सूत्र को उस गरमजल में डाल दिया । गरमजल के संबंध से वह निर्मल हो गया । मल रहित होते ही सूत्र का अंत और ग्रन्थिभाग ये दोनों दिखलाई देने लगे। बाद में उस ने यष्टि को भी जल में डाल दिया । डालते ही यष्टि का जो मूलभाग था वह जल में डूब गया । डूबते ही उसको इस बात का કરતા હતા. કાઈ ખીજા રાજ્યના રાજાએ તેની પાસે ક્રીડાનિમિત્તે ત્રણ વસ્તુ भोडली. (१) तेमां मे गूढसूत्र तुं, मां शुभ गांड हुती. (२) मील सरमा ભાગ વાળી લાકડી હતી જેના મૂળ ભાગ ગુપ્ત હતા (૩) લાખથી અલક્ષિત દ્વારવાળા ડખ્ખા હતા. મુરુડે તે ત્રણે ચીજો પેાતાના ખાસ માણસાને મેલાવીને ખતાવી, પણુ કાઈ પણ તેનું રહસ્ય સમજી શકયું નહી. ત્યાર બાદ કળાચાયૂને ખેલાવીને રાજાએ તેમને પૂછ્યું, “હું આય! આપ આ સૂત્રના ગ્રન્થિ द्वारने लगे। छो ? उसायायें उर्छु, "डा लागू छु” पछी ते उजायायें गरभ પાણી મંગાવ્યું, અને તે સૂત્રને તે ગરમ પાણીમાં મૂકયું. ગરમ પાણીના સંસગથી તે સ્વચ્છ થયું. નિર્મળ થતાં જ સૂત્રના અત તથા ગ્રન્થિલોગ એ મન્ત્ દેખાવા લાગ્યા. પછી તેમણે લાકડીને પણ પાણીમાં મૂકી મૂકતા જ લાકડીના જે મૂળ ભાગ હતા તે પાણીમાં ડૂબી ગયા. ડૂબતા જ તેમને તે વાત સમજાઈ
SR No.009350
Book TitleNandisutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages940
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size58 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy