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________________ मानचन्द्रिका टीका-समवायाङ्गस्वरूपवर्णनम्, ५८७ प्यते । समवायस्य खलु परीता वाचनाः, 'परीता वाचनाः' इत्यारभ्य ' संख्येयाः प्रतिपत्तयः' इत्यन्तं पूर्ववद् व्याख्येयम् । तथा स समवायः खलु अङ्गार्थतया चतुर्थम् अङ्गम् । तथा-अत्र एकः श्रुतस्कन्धः, एकम् अध्ययनम् , एक उद्देशनकाला, एकः समुदेशनकालः । तथा-एकं चतुश्चत्वारिंशं शतसहस्रम् चतुश्चत्वारिंशत्सहस्राधिकम् एकं लक्षं पदानि पदाग्रेण पदपरिमाणेनात्र सूत्रे विज्ञेयानि। तथा-अत्र संख्येयानि अक्षराणि सन्ति । 'संख्येयानि अक्षराणि ' इत्यारभ्य एवं चरणकरणप्ररूपणा आख्यायते' इत्यन्तं सर्वं पूर्ववद् व्याख्येयम् । प्रकृतमुपसंहरनाह- से तं समवाए ' स एष समवाय इति ॥ सू० ४८॥ मानकर किया है । परन्तु जब इसकी छाया “पल्लवान" होगी तब वहां अर्थ होगा अवयवों का परिमाण। ___ इस समवायांग सूत्र की संख्याती वाचनाएँ हैं। यावत् शब्द से संख्यात अनुयोगद्वार हैं संख्यात वेष्टक हैं, संख्यात श्लोक हैं, संख्यात नियुक्तियां हैं, संख्यात प्रतिपत्तियां हैं, इन वाक्यों का यहां ग्रहण हुआ है। इन सब का अर्थ पहले आचारांग के वर्णनमें सूत्र ४५ पैंतालीसमें हो चुका है। इस तरह यह अंगों की अपेक्षा चतुर्थ अंग है। इसमें एक अध्ययन है, एक श्रुतस्कंध है, एक उद्देशनकाल है, और एक ही समुद्देशनकाल है। इसमें पदों की संख्या एक लाख चवालीस ४४ हजार है। इसमें संख्यात अक्षर हैं। तथा अनंत गम हैं, अनंत पर्यायें हैं, असंख्यात त्रस हैं, अनंत स्थावर हैं । ये सब द्रव्यार्थिकनय की अपेक्षा से शाश्वत हैं, पर्यायार्थिकनय की अपेक्षा से कृत-अशाश्वत हैं, सूत्र में नी छाया-" पर्यवाय " मानीन ध्य छे. प ती छाया “ पल्लवाय" थाय તે ત્યાં અવયવોનું પરિમાણ એવો અર્થ થશે.” २मा समायin सूत्रनी सभ्यात वायनामा छ, यावत् ७४थी. सभ्यात અનુગદ્વાર છે સંખ્યાત વેષ્ટક છે, સંખ્યાત કલેક છે, સંખ્યા નિર્યુક્તિઓ છે, સંખ્યાત પ્રતિપત્તિયો છે, જે વાકને અહી વાપર્યા છે તે બધાને અર્થ આગળ આચારાંગના વર્ણનમાં આપી દેવામાં આવ્યું છે. આ રીતે તે અંગેની અપેક્ષાએ ચોથું અંગ છે. તેમાં એક અધ્યયન છે, એક શ્રુતસ્ક ધ છે, એક ઉશનકાલ છે, અને એક જ સમુરેશનકાળ છે. તેમાં પદેની સંખ્યા એક साम युभाणीस १२ (१४४०००) छे. ते सध्यात सक्ष२ छे. तथा અનંત ગમ છે અનંત પર્યા છે, અસંખ્યાત ત્રસ છે, અનંત સ્થાવર છે. એ બધા દ્રવ્યાર્થિક નયની અપેક્ષાએ શાશ્વત છે, પર્યાયાર્થિક નયની અપેક્ષાએ
SR No.009350
Book TitleNandisutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages940
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size58 MB
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