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________________ ૭૨ नन्दीसूत्रे टीका-' से कि तं०' इत्यादि अथ किं तत् सूत्रकृतम्-सूत्रकृताङ्गम् ? सूचनात् जीवा-जीवादिपदार्थानां प्रतिवोधनात् सूत्रम् , यद्वा-सर्वद्रव्यपर्यायनयाधर्थ सूचनात् सूत्रम् , अथवा-सुप्तमिव सूत्रम् , यथा-सुप्तः पुरुषः प्रतिवोधितः सन्नभीष्टं कार्य साधयति, तथैवेदमर्थेन प्रतियोधितं सन्निःश्रेयसं साधयति । तथा सूत्रं तन्तुः, तदिव सूत्रम् , यथा तन्तुना द्वे त्रीणि तदधिकानि वा वस्तूनि एकत्र संयोज्यते, तथैव एकेन सूत्रेण बहवोऽर्था निवध्यन्ते इति सूत्रम् । अथवेदमपि सूत्रलक्षणम् सूत्रकार आचारांगका स्वरूप कह कर अब दूसरे अङ्ग सूत्रकृताङ्ग का स्वरूप कहते हैं-से किं तं स्यूयगडे० ' इत्यादि । शिष्य प्रश्न-हे भदन्त ! द्वितीय अङ्ग खूत्रकृताङ्गका क्या स्वरूप है ? उत्तर-जो सूत्ररूपसे रचा गया है वह “ सूत्रकृत" है । यद्यपि सूत्ररूपसे ही समस्त अंगोंकी रचना हुई है, फिर भी इसे “जो सूत्र रूपसे रचा गया वह सूत्रकृत है " ऐसा जो कहा गया है वह रूढिकी अपेक्षा से जानना चाहिये । “सूचनात् मूत्रम् " समस्त जीवादिक पदार्थों का जो प्रतिबोधक होता है वह सूत्र है अथवा-द्रव्यार्थिक एवं पर्यायार्थिकनयके विषवभूत समस्त जीवादिक पदार्थो का जो प्ररूपक होता है वह सूत्र है अथवा "सुप्तलिव लूत्रम् " जैसे सोया हुआ कोई पुरुष जब जगा दिया जाता है तो वह अपने अभीष्ट कार्यको करने में लग जाता है उसी प्रकार अर्थ से प्रतियोधित हुआ सूत्र निःश्रेयस आत्म સૂત્રકાર આચારાંગનું સ્વરૂપ કહીને બીજા અંગ-સૂત્રકૃતાંગનું સ્વરૂપ કહે छ—“से कि त सूयगडे० " त्याहिશિષ્ય પૂછે છે-હે ભદન્ત ! દ્વિતીય અંગ સૂત્રકૃતાંગનું શું સ્વરૂપ છે? उत्त२-२ सूत्र३चे स्यामा मावेस छे ते "सूत्रकृत" छ. ने समस्त અંગેની રચના સૂત્રરૂપે જ થઈ છે તે પણ તેને “જે સૂત્રરૂપે રચવામાં આવેલ છે તે સૂત્રકૃત છે” એવું જે કહેલ છે તે રૂઢીની અપેક્ષાએ જાણવું જોઈએ. " सूचनात् सूत्रम् ” समस्त पाहि पातु २ प्रतिमाय खाय छ ते સૂત્ર છે. અથવા દ્રવ્યાર્થિક અને પર્યાયાર્થિક નયના વિષયભૂત સમસ્ત જીવાદિક हार्थानु प्र३५४ हाय छे ते सूत्र छ. अथवा “ सुप्तमिव सूत्रम् ” रेम સુતેલા કે પુરૂષને જ્યારે જગાડવામાં આવે છે ત્યારે તે પિતાના અભીષ્ટ કાર્ય કરવાને મંડી જાય છે એ જ પ્રકારે અર્થથી પ્રતિબંધિત થયેલ સૂત્ર
SR No.009350
Book TitleNandisutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages940
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size58 MB
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