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________________ नन्दीसूत्रे उत्कालिकं श्रुतमनेकविधं प्रज्ञप्तम् । तद् यथा-'दशवैकालिकम्' इत्यादि । तत्र दशवैकालिकं सुप्रसिद्धम् ? । तथा-कल्पिकाकल्पिकम्-कल्पाकल्पप्रतिपादकं सूत्रमित्यर्थः २ । तथा-चुल्लकल्पश्रुतं ३, महाकल्पश्रुतमिति । कल्पः-स्थविरादिकल्पः । तत्प्रतिपादकं श्रुतं-कल्पश्रुतम् । तच्च द्विविधं-चुल्लकल्पश्रुतं महाकल्पश्रुतमिति । उत्तर-उत्कालिकश्रुत अनेक प्रकार का कहा गया है, जैसे-दशवैकालिक १, कल्पिकाकल्पिक-कल्पाकल्पप्रतिपादकसूत्र २, चुल्लकल्पश्रुत ३, महाकल्पश्रुत ४, औपपातिक ५, राजप्रश्नीय ६, जीवाभिगम ७, प्रज्ञापना ८, महाप्रज्ञापना ९, प्रमादाप्रमाद १०, नंदि ११, अनुयोगद्वार १२, देवेन्द्रस्तव १३, तन्दुल वैचारिक १४, चन्द्रकवेध्य १५, सूर्यप्रज्ञप्ति १६, पौरुषीमण्डल १७, मण्डलप्रवेश १८, विद्याचरणविनिश्चय १९, गणि. विद्या २०, ध्यानविभक्तिः २१, मरणविभक्ति २२, आत्मविशोधि २३, वीतरागश्रुत २४, संखेलनाश्रुत २५, विहारकल्प २६, चरणविधि २७, आतुरप्रत्याख्यान २८, महाप्रत्याख्यान २९, इत्यादि, ये समस्त श्रुत उत्कालिक हैं। ___ इनमें दशवकालिक प्रसिद्ध है १ । कल्पाकल्प का प्रतिपादकश्रुत कल्पिकाकल्पिक है २ । स्थविर आदि के कल्प का प्रतिपादक जो श्रुत है वह कल्पसूत्र है । यह चुल्लकल्पश्रुत तथा महाकल्पश्रुत के भेद से दो प्रकार का बतलाया गया है । जो श्रुत, ग्रंथ एवं अर्थ की अपेक्षा अल्प उत्तर-आलिश्रुत मने Rai & छ, वi (१) शzles, (२) ५४ अल्पि४-४६५३६५ प्रतिपा६४ सूत्र, (3) युस४६५श्रुत, (४) भडा४५ श्रुत, (५) सोयाति४, (6) राप्रश्नीय, (७) निगम, (८) प्रज्ञायना, () महाप्रज्ञापना, (१०) प्रमाप्रमाद, (११) नही, (१२) मनुयार, (१३) हेवेन्द्रस्त, (१४) तन्दुर क्यारि४, (१५) यन्द्र वेध्य, (१६) सूर्य प्रज्ञति, (१७) पौषी भस, (१८) में प्रवेश, (१८) विद्याय विनिश्चय, (२०) गणिविधा, (२१) ध्यानविमति, (२२) भ२५ विति , (२3) मात्मविधि, (२४) वात श्रुत, (२५) संवेमना श्रुत, (२६) विहार ४६५, (૨૭) ચરણવિધિ, (૨૮) આતુર પ્રત્યાખ્યાન. મહાપ્રત્યાખ્યાન ઈત્યાદિ આ સઘળી ઉત્કાલિક શ્રત છે. તેઓમાં દશવૈકાલિક પ્રસિદ્ધ છે. ૧ કલ્યાકલ્પનું પ્રતિપાદક શ્રત કલ્પિકાકલ્પિક છે. ૨ સ્થવિર આદિના કલ્પનું પ્રતિપાદક જે શ્રત છે તે કલ્પસૂત્ર છે. તે ચુલ્લકલ્પકૃત તથા મહાકલ્પકૃત એ ભેદથી બે પ્રકારનું દર્શાવ્યું છે. જે શ્રુત
SR No.009350
Book TitleNandisutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages940
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size58 MB
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