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________________ २२२ मन्दीसवे एवं च-" नास्ति स्त्रीणां मोक्षः, परिग्रहवत्त्वात् , गृहस्थवत्" इत्यनुमान निराकृतं धर्मोपकरणवस्त्रस्यापरिग्रहत्वेन प्रसाधितत्वादिति । ॥ इति चैलस्य चारित्राभावहेतुत्वनिराकरणम् ॥१॥ स्त्रीत्वमेव चारित्रविरोधीत्यगीकृत्य स्त्रीषु चारित्रासंभव इत्यपि कथनं न युक्तम् । यतो-यदि स्त्रीत्वस्य चारित्रविरोधः स्यात् , तदा तासामविशेषेणैव प्रत्राजनं . निषिध्यत् ' इत्थीओ पव्वावेउं न कप्पइ' इत्येवं वदेत् , न तु विशेषेण, यथोच्यते--" गम्भिणी वालवच्छा य पवावेउं न कप्पइ " इति ।। ॥ इति स्त्रीत्वमेव चारित्रविरोधीति पक्षस्य निराकरणम् ॥ २ ॥ का अभाव नहीं होता है, अतः जब वस्त्र में परिग्रहरूपता नहीं आती है तब ऐसा बोलना कि “स्त्रीणां न मोक्षः परिग्रहवत्त्वात् गृहस्थवत्" "गृहस्थ की तरह परिग्रहयुक्त होने से स्त्रियों को मोक्ष नहीं होता है" वहखण्डित हो जाता है, क्यों कि वस्त्र धर्म का उपकरण है अतः वह परिग्रहरूप नहीं है। ____ इसी तरह ऐसा कि "स्त्रीत्वमेव चारित्रविरोधि" अर्थात् "स्त्रीपना ही चारित्र का विरोधी है" सो ठीक नहीं है, कारण कि इस तरह यदि स्त्रीपने के साथ चारित्र का विरोध होता तो उन्हें विना किसी विशेषता के दीक्षा देना ही निषिद्ध होता, परन्तु ऐसा तो है नहीं। शास्त्र में तो केवल ऐसा ही लिखा मिलता है कि"गम्भिणी बालवच्छा य पवावे न कप्पा"-गर्भिणी को बालवत्सा को अर्थात् छोटे बच्चे वाली को दीक्षा नहीं देनी चाहिये । यदि सामान्यतः स्त्रियों के लिये दीक्षा का निषेध करना होता तो " इत्थीओ पवावेउं न कप्पइ" ऐसा कहते! ચારિત્રને અભાવ થતું નથી, તેથી જે વસ્ત્રમાં પરિગ્રહરૂપતા આવતી નથી तो मे मात "स्त्रीणां न मोक्षः परिग्रह वत्वात् गृहस्थवत्" " गृहस्थाना જેમ પરિગ્રહયુકત હોવાથી સ્ત્રીઓને મોક્ષ મળતો નથી” એ યુક્તિનું ખંડન થઈ જાય છે, કારણ કે વસ્ત્ર ધર્મનું ઉપકરણ છે, તેથી તે પરિગ્રહરૂપ નથી. या शत म हे “ स्त्रीत्वमेव चारित्रविरोधि" मेट , स्त्रीप જ ચારિત્રનું વિરોધી છે” તે પણ બરાબર નથી, કારણ કે આ પ્રમાણે જે સ્ત્રીપણાની સાથે ચારિત્રને વિરોધ હોત તે તેમને કઈ પણ વિશેષતા વિના દીક્ષા આપવાનું જ નિષિદ્ધ હોત, પણ એવું તો છે નહીં. શાસ્ત્રમાં તે ફકત स मेतु भणे छ ? “गन्भिणी वालवच्छा य पव्वावेउं न कप्पइ" सगलान તથા બાલવત્સાને એટલે કે નાનાં બાળકવાળીને દીક્ષા ન આપવી જોઈએ. જો सामान्यत: सीमाने दीक्षाना निषेध ४२वा डोत त। इत्थीओ पवावेउ न कप्पइ"
SR No.009350
Book TitleNandisutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages940
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size58 MB
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