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________________ يوف মালুম कम् , ब्रह्मचारिणोऽन्तःकरण प्रशस्ततागाम्भीर्यस्थैर्ययुक्त भवतीति भावः । तया -- 'अज्जवसाहुजणाचरिय' आजपमाननाचरितम् आर्जन्सरलभावे सलग्ना ये साधुजनास्तैराचरितम् । तथा ' मोसमग्गे ' मोसमाः मोक्षम्यानप्रापफ इत्यर्य तथा 'विसुद्धसिद्धिगइनिलये' विशुद्धसिद्धगतिनिलय =विशुद्धारागादिदोषर जितत्वान्निर्मलाया सिद्धिः कृतकृत्यता, सैरगम्यमानताद् गतिम्तस्या निलयोगृहम् सिद्धिगतिमापकत्वात्सिद्विस्थानमित्यर्थ , तथा 'सासय ' शाश्वत माधपर्यवसितशिवसुखजनकत्वात् , ' अव्यापार ' अव्यागाध शारीरिकमानसिन्दुः खवर्जितत्वात् 'अपुणभर' अपुनर्भवम् पुनर्जन्मप्रतिरोधात्यात् , ‘पमत्य' प्रशस्तम्-निर्मलत्वात् , तथा-' सौम्म ' सोम्यम्--सारजनमनोमोटजनकत्वाद, कर्ता का अतःकरण शुभ, गभीर-अगाध, एव स्थिर हो जाता है । तथा (अजवसाहुजगाचरिय ) यह ब्रह्मचर्य, आर्जव में-सरलभाव में-सलग्न बने हुए साधुजनों के द्वारा आचरित किया जाता है । तथा-(मोक्ख मग्गे ) यह ब्रह्मचर्य अपने पालनकर्ता को मोक्ष स्थान की प्राप्ति कराने वाला होता है तथा ( विसुद्धसिद्धिगह निलये ) यह ब्रह्मचर्य विशुद्धरागादि दोषो से वर्जित होने के कारण निर्मल-जो कृतकृत्यता रूप गति है उसका घर है-सिद्धि गति का प्रापक होने से सिद्धि का स्थान है तथा (सासय) साद्यपर्यचसित शिव सुख का जनक होने से यह ब्रह्मचर्य शाश्वत है ( अव्वाचाह) शारीरिक एव मानसिक दुःखों से रहित होने के कारण यह ब्रह्मचर्य अव्यायाध-याधा से रहित है। ( अपुणभन) इसके प्रभाव से ससार मे जीव का पुनर्जन्म नहीं होता, उसका यह प्रतिरोधक है इसलिये यह अपुनर्भवरूप है। (पसत्यानिमल मियमझ" ते प्रायया पासनथी तेनु पासन ४२नारनु सात २४ शुन, लार, मथ, मने स्थिर थ तय छे तथा “ अज्जवसाहुजण चरिय" આ બ્રહાચર્ય, આર્જવ, સરલ ભાવમાં લીન થયેલ સાધુજને દ્વારા આચરવામાં भाव छ तथा "मोक्समग्गे " मा प्रायर्य, तेनु पालन ४२ना२ने भाक्षना प्राप्ति शबना२ डाय छे तथा “विसुद्धसिद्धिगइनिलये"मा प्रहाययं विशुद्ध રાગાદિ દેથી રહિત હોવાને લીધે નિર્મળ-કે કૃતકૃત્યતા રૂપ ગતિ છે તેનું घर -सिद्धिगति प्रात ४२वाना२ डापाथी सिद्धिनु -थान छ, तथा “ सासय " यभी शिव सुमनु न पाथी मा ब्रह्मययं शाश्वत छ “ अव्वावाह " શારીરિક અને માનસિક દુખેથી રહિત હોવાને કારણે આ બ્રહ્મચર્ય અવ્યાमाध-माधाथी २जित छ, “ अपुणभय" तेना प्रमाथी ससारमा ने પુનર્જન્મ લે પડતો નથી તેનું તે પ્રતિરોધક છે તેથી તે અપુનર્ભવરૂપ છે
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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