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________________ ७२ प्रश्नव्याकरणसूत्र संजममूलदलियणिभ पंचमहव्वयसुरक्सिय समिडगुत्तिगुत्त झाणवरकवाडसुकयरक्षणमझप्पदिण्णफलिह सन्नद्वय होच्छइय दुग्गइपहं सुगइपहदेसग च लोगुत्तम च वयमिण पउमसरतलागपालिभूय महासगडअरगतुवभूयं महाविडिमरखरखधभूयं महानगरपागारकवाडफलिहभृयं रज्जुपिणन्डोव्यइदकेउ विसु. गगुणसंपिणद्धं ॥ सू० १॥ _____टीका--'जबू' हे जम्बू । ' एत्तो य' इतश्व-मदत्तादानविरमणसवरद्वारसमाप्त्यनन्तर च 'वभचेर' प्रमचयं नाम चतुर्थ समरद्वारमभिगीयते । तत्ति स्वरूपमित्याह-' उत्तमतवनियमनाणसणचरित्तविणयमूल ' उत्तमतपोनियमज्ञानद शनचारित्रपिनयमूलम्-तत्र उत्तमा प्रधानाः ये तपो नियमज्ञानदर्शनचारित्रविनया तत्र-तपः अनशनादिक द्वादशनिधम् , नियमा=अभिग्रहादय , ज्ञान-पदार्थाना विशिष्टबोधः, दर्शनम् तत्वश्रद्धानरूपम् , चारित्र-सावद्ययोगविरतिलक्षणम् , त्रि नया अभ्युत्थानादिलक्षण., एतेपी द्वन्द्व, तेपा मूलमिवमूल कारण यत्तत्तथोक्तम्, टीकार्थ-(जबू) हे जम्बू ! (एत्तो य) अदत्तादानविरमण नामक सवरद्वार की समाप्ति के अनन्तर अब मैं (वभचेर ) ब्रह्मचर्य नामक चतुर्थ सवर द्वार को करता है। उसका स्वरूप इस प्रकार है-(उत्तमतवनियमनाणदसणचरित्तविणयमूल ) अनशन आदि बारह प्रकार के उत्तमतपों का, उत्तम अभिग्रह आदि रूप नियमो का, पदार्थी का विशिष्टयोध रूप उत्तमज्ञान का, पदार्थों का अद्धानरूप उत्तमदर्शन का सोवद्ययोग विरतिरूप उत्तम चारित्र का, और अभ्युत्थान आदि रूप उत्तम विनय का, मूल की तरह यह ब्रह्मचर्य मूल कारण है, तथा __Ast-"ज" है. यू | "एत्तो य" महत्तान विरभान नामना सवारी समाति ५छी वे " बमचेर " प्रहाय नामना याथा सव२ द्वारनु वर्ष ४३ तेनु २१३५ मा प्रभारी छ “ उत्तमतरनियमनाणदसणचरित्त विणयमूल" अनशन माह मा२ २ना उत्तम तनु, उत्तम मनि आदि રૂપ નિયમન, પદાર્થોના વિશિષ્ટ બોધરૂપ ઉત્તમ જ્ઞાનનુ, પદાર્થોના શ્રદ્ધાન રૂપે ઉત્તમ દર્શનનુ સાવદ્યોગ વિરતિરૂપ ઉત્તમ ચારિત્રનું, અને અભ્યસ્થાન 'આદિ રૂપ ઉત્તમ વિનયનું, મૂળની જેમ આ બ્રહ્મચર્ય મૂળ કારણ છે તથા
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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