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________________ प्रश्नग्याकरण च्चावचकुलग्राह्यो य पिण्डपातः भिक्षा, उपलक्षणाद् खपानापन्यापपिरपिगपते, तस्य लाभः = दायकामाप्तिस्तस्मिन् । सइ । मति सजण्ण' सयतेनसाधुना 'मोत्तव्य भोक्तव्यम् = परिमोक्तव्य । 'मोक्तव्यम् ' इत्यग्रेऽपि सर्वत्र योज्यम् , कथ भोक्तव्यम् ? इत्याह-समिय' सम्यक् = अदत्तादान यया न भवति तथेत्यर्थः । सम्यक्त्वमेवाह-' न सागमनहिय 'न भाकपाधिम्मोक्त व्यम् । शाफम्पाधिके भोजने कृते सति प्रमाणादधिकाहारो भाति, तेनादत्तादा नदोपापत्तिर्भवति, तथा 'सद्ध ' प्रचुर भोक्तव्यम् । 'न वेगिय' न वेगित वेगयुक्त वेगेन ग्रास मुसे मक्षिप्य भोक्तव्यम्, 'न तुरिय स्वरित-वरायुक्त यासस्य गिलने शीघ्रता कला भोक्तव्यम् । तथा-न 'चल' चपर-इस्तग्रीवादिकाय, कल्पनीय भिक्षा तथा सतपात्र आदि उपधि का लाभ होने पर (सजएण भोत्तव्य ) मुनि को उसे अपने खाने आदि के उपयोग में लेना चाहिये । साधु को आहार किस प्रकार से कैसा लेना चाहिये मूत्रकार अब इस बात को कहते हैं-(समिय) अदत्तादान का दोष न लगे इस प्रकार से यतना रग्बते हुए न साग सूवाहिय) शाक और दाल की अधिकता के साथ भोजन नहीं करना चाहिये-अर्थात्-शाक और दाल की अधिकता वाला भोजन प्रमाण से अधिक खा लिया जाता है, इसलिये बत्तीस ग्रास लेने की अपेक्षा भोजन में अधिकता आने से साधु को अदत्तादान दोष की आपत्ति आती है। (न खद्ध) उचित मात्रा में भी दाल शाक के साथ प्रचुर मात्रा में आहार नहीं करना चाहिये। तथा (न वेगिय) जल्दीर उतावली के साथ भी भोजन नहीं करना चाहिये । तथा (न तुरिय) त्वगयुक्त होकर ग्रास के गिलने में पर पात्र माहि विना anet यता "सजएण भोत्तन" भनि तपाताने માટે ખાવા આદિના ઉપયોગમાં લેવું જોઈએ હવે સૂત્રકાર એ વાત બતાવે છે કે મુનિએ ભજન કેવી રીતે ખાવું જોઈએ અને કેવું ન ખાવું જોઈએ "समिय " महत्ताहानना होप नाते प्रमाणे यता पू' "न सागसूवहिय" શાક અને દાળની અધિકતા વાળુ ભેજન કરવું નહીં, એટલે કે શાક અને દળની અધિક્તા વાળું ભેજનું પ્રમાણમાં વધારે ખવાય છે, તે કારણે બત્રીશ पास ४२ता aiva पधारे खेवाथा साधुने महत्तहान होप न छ “ न खद्ध" પ્રમાણમાં દાળ શાકની સાથે વધારે પ્રમાણમા પણ આહાર લેવો જોઈએ નહી, તથા "न वेगियध्व" alaka uथा पान ४२७ नयनी, तथा "नतु रिय"१२१ सहित जियागणे तारपामा ५ ४शन ५७ लान नही ४२७
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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