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________________ " 16 " " सुदर्शिनी टीकाद्य०३ स् 9 'अनुज्ञातसस्तार ग्रहण' नाम २ भावनानिरूपणम् ७४५ माधवीलतादिपरिमण्डितनविशेषः, उद्यानम् = उपवनम् कानन = सामान्यवृक्षोपेत वनम्, वनम् = नगरदूर चर्चिनम्, एतेषा य प्रदेश: = स्थान तस्य यो भागः = एक देशस्तत्र स्थित 'इक् ढाण' इति भाषा प्रसिद्ध तृणविशेष चा=अथवा 'कढिग ' कठिन = ' रोइस ' इति भाषा प्रसिद्ध गुणविशेषः वा, यद्वा-' जतुग ' जन्तुक= जलाशयोत्पन्नगुणविशेषम् =अथना 'परमेरकुच्चकुसडग्भप्पलालमूयग चलयपुप्फफटतयप्पबाल कद मूलवणक सफराह' परमेरकूर्च कुशदर्भपलाल मूयकवलवज पुष्पफलवक्रम पालकन्दमूलराष्टशर्करादि, तंत्र - परा : तृणविशेष, मेरा:मुब्जसरिका. कूर्चानि यैस्तृणविशेषैः भित्तौ सेटिकावलेपनार्थ कृर्चा ( कूँची ) निर्मीयन्ते ते तृणविशेषाः कृशाः = स्वाकारास्तृणविशेषा, दर्भाः दीर्घाकाराः कुशाएव दर्भा उच्यन्ते, पलाल:= ' पुआल ' इति भापाप्रसिद्धः, मूयकः = ' मोति - गा' इति भाषा प्रसिद्धस्तृणविशेषः, चलवजः =दर्भजातीयतृणविशेषः, पुष्फफल त्वमवाल कन्दमूलतृणकाष्ठशर्कराः प्रतीताः, एता आदौ यस्य तत्तथोक्त 'ज आराम - माधवीलता आदि से परिमंडित चनविशेष में, उद्यान- उपवन में, कानन - सामान्य वृक्षों से युक्त वन मे, वन - नगर से दूरवर्ती जंगल में, अर्थात् इन स्थानों के प्रदेशों के एकदेश में स्थित ( ज किंचि ) जो कुछ (इकड़ वा ) ढाढूण - तृणविशेष, अथवा ( कढिणग वा ) कठि - नक- रोडस नामक तृणविशेष, अथवा ( जतुग वा ) जतुक - जलाशय मेंउत्पन्न हुए जतुक नाम के तृणविशेष, ( पर - मेर - कुच - कुस - ङभप्पलाल - मूयग-वलय- पुष्फ-फल-तय- प्पवाल - कद-मूल--तण-कठ्ठसक्राइ) पर नाम के तृणविशेष, कुश नामक तृणविशेष, दर्भनामक तृणविशेष, पलाल नामक तृणविशेष, मोर्निंग नामक तृणविशेष, वल्वज - दर्भ - जाति का तृणविशेष, पुष्प, फल, त्वक्-डाल, प्रवालभाधवीसता माद्दिथी भारछाहित वनमा, उद्यान - भागभा, जनन-सामान्य वृक्षोथी યુક્ત વનમા, વન-નગરથી દૂર આવેલા જગલમા, એટલે કે તે સ્થાનેાના प्रदेशोभाना भेट देशमा, स्थित " ज किचि " ? अ " " इकड वा ढाढ़ शुभेड प्रान्नु घास, अथवा " कठिणग वा " निरोधसनाभनु मे अरनु ઘાસ અથવા जतुग वा જ તુક–જળાશયમા પેદા થયેલ જતુક નામનુ ઘાસ 16 ܕܕ "पर, मेर, कुञ्च, कुस, डब्भ, प्पलाल, मूयग, वल्लय, पुप्फ, फल, तय, पवाल, कद, मूल, तण, क्ट्ठ सकराइ" ५२ नामनु घास, भैर-भुन्ट नाभनु ઘાસ, કુશ નામનુ ઘાસ, દ` નામનુ ઘાસ પલાલ નામનુ ઘાસ, મેર્લિંગ નામનુ घास, वल्व४-हर्लनी लतनु घास, पुण्य, इण, वडू-छास, अवास-डुं यज,
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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