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________________ सदशिनी टीफा १० ३ सू०४ कोमुनिरयतादानादिवतमाराधयति ७२२ साधर्मिके तपस्विकुलगणसझे, तत्र अन्यन्तत्राला चष्टापोयोपालः, अत्यन्त दुर्वल! कशागत्वेन स्वकार्यररणाक्षमः, 'गिलान' रहान व्या यादिना भिक्षा टनादावसमर्थ , 'युड्स' वृद्धः स्थविर ज्ञानवः, पर्यायटद्व , वयोवश्व, 'खवग' क्षपकामासक्षपणारग्रनप.मारित्वेन प्रपचनप्रभावकः, 'पवत्तय' मवर्तकःप्रशस्तयोगेपु यथायोग्यतया सावन मार्तयतीति प्रवर्तक , आचार्य: गणनेतायो हि शादानुसारेण सयमाचरति, अन्याश्चाचार यति स आचार्य , तदुक्तम् “आचिनोति च शास्त्राणि, आचार ग्राहयत्यपि । स्वयमाचरते यस्मात्तस्मादाचार्य उच्यते " इति। उपाध्याय'-उप-समीपे आगतान् शिष्यान् सूनार्थमध्यापयति यः स उपाध्याय', एने समाहारद्वन्द्वः, तस्मिन्, तथोक्ते, तया ' सेहे' शैक्षे-नवदीक्षिते सायौं, तथा-'साहम्मिए' सार्मिके श्रुतलिङ्गमपचनैः समानश्रद्धावान् पालक साधु हैं तथा जो दुर्बल हैकम जोर होने से जो अपने कार्य करने में अक्षम है, जो ग्लान हैं-व्याधि आदि के निमित्त को लेकर जो भिक्षावृत्ति आदि करने में असमर्थ हैं, जो घृद्ध है-स्थयिर-जरा से जर्जरित शरीर वाले ह जान की अपेक्षा दीक्षापर्याय की अपेक्षा और आयु की अपेक्षा जो वृद्ध-पडे हैं, जो क्षपक हैं मासक्षपक आदि उग्र तपस्या करनेवाले हैं, जो प्रवर्तक हैं-प्रशस्त-योगोंमें साधुजनो को उनकी योग्यता के अनुसार प्रवृत्ति कराने वाले हैं, जो आचार्य हैगण के नेता हैं-अर्थात्-साधु सवधी आचार को जो स्वय पालते हैं, और दूसरे साधुओं से पलाते हैं, जो उपा यार हैं-अपने पासमें आये हुए साधुओं को-शिष्यजनों को जो सूत्र पढाते हैं, जो (से) शिव्य है-जय दीक्षित साधुजन हैं, जो (सारम्मि) साधर्मिक है-श्रुत लिङ्ग और प्रवचन-प्ररूपणा उनको लेकर जिनकीश्रद्धा समान है जो જે પિતાના કામ કરવાને અસમર્થ છે, જે જ્ઞાન છે વ્યાવિ આદિ ને કારણે જે ભિક્ષાવૃત્તિ આદિ કવ્વાને અસમર્થ છે, જે વૃદ્ધ છે-રવિર–જરાને કારણે જર્જરિત શરીરવાળા છે, જ્ઞાનની અપેક્ષાએ, દીક્ષા પર્યાયની અપેક્ષાએ અને આયુની અપેક્ષાએ જે વૃદ્ધ મેટા છે, જે પડ છે મા ખમણ આદિ ઉગ્ર તપસ્યા કરનાર છે, જે પ્રવર્તક છે- શ ત ગોમા માધુજનને તેમની ગ્યતા અનુસાર પ્રવૃત્તિ કરાવનાર છે, જે આચાર્ય છે–ગણના નેતા છે એટલે કે સાધુના આચારોને જે જાતે પાળે છે અને બીજા સાધુઓ પાસે પળાવે છે, જે ઉપાધ્યાય –પોતાની પાસે આવેલા સાધુઓ-શિષ્યજનેને જેઓ सूत्री ला , २ “सेहे " शिष्यो छ-नहीक्षित साधुभाछे, २ "सा
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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