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________________ ७२६ प्रभयाकरण स्तेना, फस्यापि श्रुतविशेषस्या पारयान कत्यापि सम्वादुपस्य जनसमधे खकीयत्येन त ख्यापयन साधुर्भावसरोन उच्यते । व्या यः साधु 'साकरे' शब्दकरपाररात्रिगमनानन्तर यो मरता महना शदेन मागते स भन्दकर उभ्यते । 'झझकरे 'ममाफर:-पेन कार्येण गणस्य मदो भाति ततार्यकारी 'कलहकरे कलाकार याचिरुमण्डनकारी 'वरकरे ' रफर परस्परशत्रुभावो त्पादक , क्या-फिहकरे' विक्याम्च्यादिश्याफारी, 'असमाहिकारगे' असमाधिकारका परचित्तोडगकारकः, तथा-सया' सदा 'अप्पमाणमोड' अपने में अविष्णमान उत्कृष्ट आचारवत्ता स्थापित की है अतः जो ऐसे आचारस्तेन शेते है उनसे इस महारत की आराधना नहीं हो सकती है, (भावतेणे ) जो श्रुतजान आदि मार की चोरी करता है वह भावस्तेन करलाता है, जैसे किसी के मुख से किसी साधु का श्रुत विशेषसमधी अपूर्व व्याख्यान सुनकर करता है कि यह व्याख्यान तो मेराही दिया हुआ है, इस प्रकार का भानस्तेन साधु भी इस महाव्रतकी आराधना नहीं कर सकता है। इसी तरह (सहकरे) जो साधु एक प्रहर रात्रि के चले जाने के बाद पड़े जोर २ से बोलना है उसका नाम शब्दकर है । (अकरे ) जिस कार्य से गण में भेद हो जाय उस काम को करने वाला माधु अशाफर है। (कलहकरे) आपस में जा वाक्कलह कर बैठता है उसका नाम कलहकर है, ( वेरकरे ) परस्पर में जो शत्रुता का उत्पादक होता है यह बैरकर है, (विकरकरे ) स्त्री आदि विकथाओं को करनेवाला साधु विकथाकर है, (असमाहिकर। - - અવિદ્યમાન છે તે ઉત્કૃષ્ટ આચારવત્તાનું આપણું કર્યું છે તેથી જે સાધુઓ એવા આચાર ચોર હોય છે તેમનાથી આ મહાવ્રતની આરાધના થઈ શકતા नथी "भावतेणे" श्रुतशान महलानी यारी छे ते माक्या२ उपाय છે જેમ કે કોઈના મોઢે કેઈ સાધુન કેઈશાઅ સ બ ધી અપૂર્વ વ્યાખ્યાન સાભળીને જે સાધુ એમ કહે કે આ વ્યાખ્યાન તેમે જ આપેલું છે” આ પ્રકારને ભાવચાર साधु ५५मानतनी साराधना सती नथी से प्रभारी "सहकरे" श००४२જે સાધુ એક પ્રહર રાત્રિ પ્રસાર થયા પછી ઘણા જોરથી બેલે છે તેને શદકર छ, “झझकरे" अयथा सभउमा हमार थाय त आय ४२नार साधु आ४२. ४वाय छ, “ कलहकरे ' सापसमा पास 3 मेसे. छ A९४२ ४९ छ, “ वेरकरे' आपसमा २२२ पहा ४२वनार डाय ते २२ ४२ ४३ छ, “ विकहकरे " भी मालवियामा रनार आधुन विभा२ ५७
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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