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________________ ७२० प्रभायाकरण 'अचियत्तभत्तपाण' अप्रतीतिकारकभक्तपान यनितव्यम् , अविनासमाजनस्य भक्तपान न ग्रारामित्यर्थः, तथा-'विपरपीटफगसेज्नासधारगवन्यपायफैजल्दडगरोहरणनिसेनचोरपगमुहपोतियपायपुरणाभायगमटोरिउवगरण' अपतीतिकारकपीठफलशग्यासस्तारकास्त्रपामयदण्टकरजोहरणनिषधाचोल्प हरुसदोरकमुग्वास्त्रिका पादोजना:माननभाण्डोप युपकरण पनितव्यम् । __ अविश्वासभाजनस्य पीटफगादिक न ग्रागमित्य, तथा 'परपरि वाओ' परपरिपादः-काम्या परदोपप्रकटनम् , जितव्य , परमस' परस्य 'दोसो ' दोपश्च पर्जनीय , परोक्षे निन्दा, प्रत्यक्ष दीपकथनम्, इत्युभय च अचियत्तघरप्पवेसो) जो अपनी प्रतीति-विचाम-नहीं करता हो उसके घर पर साधु को सर्वदा नहीं जाना चाहिये, तथा (अनियत्तभत्तपाण ) जो अपनी प्रतीति नहीं करता हो उसके यहा से माधु को भक्तपान नहीं लेना चाहिये । इसी तरह (अचियत्तपीढफ-गसेज्जासथारगवस्थपायकाल दडगरओहरणनिसेज्जचोलपगमुहपोत्तियपायपुछणाइ ) जो व्यक्ति अपने ऊपर विश्वास नहीं रग्नता हो उसके द्वारा प्रदत्त-(दिया हुआ) पीठ, फलक, शय्या, सम्तारक, वस्त्र, पात्र, कम्बल, दण्डक,, रजोहरण, निपया, चोर पटक, सदोरकमुत्रवत्रिका, पादप्रोन्छन आदि, तथा (भायणभटोवहि उवगरण) भाजन, भाड, उपधि, ये सब उपकरण नहीं लेना चाहिये। (परपरिवाजो) तथा काकुरूप से साधु को पर के दोपों को प्रकट नहीं करना चाहिये। तया (परस्सदोसो) परोक्ष में निंदा करना और साम्हने दोपों को कहना ये दोनों काल अचिजतघरप्पवेसो"२ पाताना विश्वास न उरतो डाय, तेना धरे साधुणे ४ीन नही, तथा “अचियत्तभचपाण" २ पाताना ५२ વિશ્વાસ ન મૂકતો હોય તેને ત્યાથી સાધુએ આહાર પાણી સ્વીકારવા नये नहीं . ४ ते " अचियत्तपीढफलगसेम्जासधारगवत्थपायकबलदडगरओहरणनिसेज्जचोलपट्टगमुहपोतियपायपु छणाइ"२ व्यक्ति याताना १२ विश्वास ન રાખતી હોય તેના દ્વારા અપાયેલ પીઠ, ફલક, શય્યા, સસ્તારક, વસ્ત્ર, પાત્ર કબળ, દડક, રજોહરણ નિષદ્યા, ચોલપટ્ટક, દેરાસહિત મુહપત્તિ, પાદ પ્રોગ છને तथा “ भायणभडोवहिउवगरण" altd, (पात्रा मा, (ध, २५ अधा साधना सेवा सो नही “परपरिवाओ" तथा अनी म साधु सास viloni avो प्रगट ४२वा लेने नहीं तथा “परस्मदोसो" घशक्ष રીતે નિંદા કરવાની તથા સામે જ દે કહેવાની પ્રવૃત્તિ સાધુએ છેડવી
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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