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________________ ७० प्रश्न याकरणसूत्र असद्भूतानि वचनानि 'जति' जापन्नि-चुपते । हास्यकाग्गिी द्वितीयमहा व्रतनाशका मान्तीत्यर्थः । कीदृश हाम्यम् ? इत्याद-'परपरिभाकारणं-परापमानहेतुक च हास्य भाति । तथा-'परपरिमायप्पिय' परपसिादमिय-परपरिवादः =अन्यदूपणाविधान प्रिय इष्टो यस्मिस्तत्वादश च हास्य भाति । तया-'परपीलाकारग' परपीडाकारक च हास्य भाति । तया-'भेयरिमुनिकारग' भेदविमूर्तिकारक-भेदः चारित्रभनः निमूर्ति =कितनयनपदनादित्येन विकृतशरीराकृतिस्तयोः कारक च हास्यम् । अण्गोग्गजणिय च होज्ज हास' अन्योन्य अर्थको गोपन करने वाले एव असद्भूत अर्थ को प्रकट करने वाले वचनों को बोला करते है । सत्यमहानत में सद्भूत अर्धका प्रकाशन और असदुद्भुत अर्थ का प्रकट करना हेय कहा है, अतःहास्य मे जब इस प्रकार की परिस्थिति रहती हैं कि उममें असद्भूत अर्थ का प्रकटन और सद्भूत अर्थ का गोपन होता है, तो द्वितीय मरावत का सरक्षण इस अवस्था में केसे हो सकता है नहीं हो सकता, इसलिये - हास्य का त्याग कहा गया है। (परपरिभवकारण च हास) रास्य पर के अपमान का कारण होता है। (परपरिवायप्पिय च रास) होस्य में पर के दूपण का कथन करना प्रीय लगता है। (परपीलाकारग च हास ) हास्य मे इस यातका भी ध्यान नहीं रहता है कि इस हास्य से अन्य को कष्ट हो रहा है। (भेयविमुत्तिकारग च हास) हास्य चारित्र के भग का हेतु हो जाता है। इसमें नयन वदन आदि शारीरिक अवयव विकृत बन जाते हैं। (अपणोग्गजणिय च होज्ज हास) हास्य અસદ્દભૂત અર્થને પ્રગટ કરનારા વચનો બોલ્યા કરે છે સત્યમહાવ્રતમા સદૂભૂત અર્થનું ગોપન તથા અસદ્દભૂત અર્થનું પ્રકારના હેય ગણવેલ છે તે હાસ્યમાં જ્યારે એવા પ્રકારની પરિસ્થિતિ રહે છે કે તેમાં અસદભૂત અર્થ પ્રગટ કરાય છે અને સદભૂત અર્થનું ગોપન કરાય છે, તે એ પરિસ્થિતિમાં દ્વિતીય મહા વ્રતનું રક્ષણ કેવી રીતે થઈ શકે ? થઈ શકે જ નહી માટે હાસ્યને પરિત્યાગ ४२. न सम सूत्र मतान्यु छ “परपरिभवकारण च हास” स्य मन्यना अपमाननु ४२५ मन छ “परपरिवायप्पिय च हास" हास्यभा अन्यना एषोनु थन ४२९ प्रिय सागे छ “परपीलाकारग च हास' હાસ્યમે તે વાતનું પણ ભાન રહેતુ નથી કે તે હાસ્યથી કઈ બીજાને કષ્ટ २४ २छु छ “ भेयविमुत्तिकारग च हास" हास्यने सीधे यात्रिी ५ થાય છે તેમાં નયન, વદન આદિ શરીરના અવયવો વિકૃત થઈ જાય છે "अण्णोष्णजणिय च होज हास” २५ मे पधारे भास अन्योन्य भा
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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