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________________ सुदर्शिनी टीका अ० १ सू० ३-४ प्रथम अधर्मद्वारनिरूपणम् २५ 'अइभओ' अतिभयः-मरणान्तमयजनकन्वान् , 'बीहणओ' मानक भयोत्पादकत्वात् 'तामणओं' वामनक कस्मातोभननम्त्वात् , 'अणज्जओ' अन्या. ग्य -न्यायादनपेत' युक्त न्याग्य , न न्याय्यः-अन्याय्यः न्यायार्जितत्वात् । 'उन्वेयणो ' उदेजनस्व-उठेगर.-हृदयोद्वेगजनस्त्वात् । चकारः समुच्चयार्थ' । 'निरचययो' निरपेक्षः-निर्गता अपेक्षा परदिनविषया यस्य स तथा परमाणत्राणान्छानितत्वान् , 'णिद्वम्मो' निर्म -श्रुतचाग्विधर्मवर्जितत्वात् , 'णिप्पिवासो' निपिपासः-माणिस्नेहरहितत्वान् , 'णिकलुणो' निष्करुणःदयाभाषार्जितन्यान् , 'निग्यवासनिधणगमणो' निरयवासनिधनगमनः, निर यवासा-नरकासः, तन गमनमे निधन पर्यवमान अन्तिमफल यस्य ग निग्यवामनिधनगमनः नरकमापरत्वात् । भूत होने के कारण प्रतिभयरूप १०, (अहमओ) मरणान्तभयजनक होने से जतिभयरूप ११. (पीहणओ) भय के उत्पादक होने से भयफारकल्प १२, (तामणभो) अकस्मात् क्षोभ का कारण होने से प्रासनकरूप १३, (अणलओ) अवैध होने के कारण-अनीति रूप होने के कारण अन्य रूप १४, ( उम्रेरणओ) हृदयमें उद्वेग का जनक होने से उद्वेगकर्तृरूप १५, (निरवयम्यो ) परप्राणी के प्राणों की रक्षा करने की चान्छा से रहित होने के कारण निरपेक्षरूप १६ (णिद्धम्मो) श्रुतचारित्र रूप धर्म से वर्जित होने के कारण निर्वमरूप १७, (णिप्पिवासो)प्राणियों के प्राणों के प्रति मनतामान से रहित होने के कारण निप्पिपासारूप १८, (णिकलुणो) दयानान से रहित होने के कारण निष्फरुणारूप १९, (निरयवासनिधणगमणो) तथा नरकगमन ही जिसका अन्तिम फल है ऐसा होने के कारण निरयवाम निधनगमनरूप २०, (मोहमभयपयओ) यह बनना भ३५ सापायी गतिमय३५, (१२) "बहणओ" मयने उत्पन्न ७२नार हावाथी लय(२०३५, (१3) " तासणओ" भन्यान सामना २४३५ वाथी वासन३३५, (१४) " अणजओ" अवैध सापाथी-मनीति३५ वान १२ सन्याय३५, (१५) " उन्वेषणओ"यमा १ पहा ४२ना२ डापाथी Ga४१२७, (१६) “निरपयस्पो" ५२ प्राथना प्रानी २६॥ पानी ४२ाथी रहित सरावाने १२ निरपेक्ष३५, (१७) “णिद्धम्मो" श्रुत-यात्रि३५ धमथी २हित पाने दो निमि३५, (१८) "णिप्पिवासो" प्राणीमाना प्रा। त२५ ममता माथी हित डावाने जा निम्पियामा3५, (१९) "णिकलुणो" ध्यामाथी २हित पाथी नि४२१३५, (२०) “निरयवासनिधणगमणो" तथा न२४ ગમનજ જેનુ અતિમ ફળ છે, એ હવાને કારણે નિરયવાસ નિધનગમનરૂપ,
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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