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________________ सुदर्शिनी टोका अ० २ सू०५ तृतीयभावनास्वरूपनिरूपणम् 'वत्थुस्स' वास्तुनः घासभूमे वा 'कएण' कृतेन-कृते इत्यर्थः, अत्र हेत्वर्थे तृतीया, एव सर्व ज्ञेयम् । लुब्धो लोलोऽलीक भणेत् ॥ १।। तथा-' कित्तीए' कीर्तेः 'लाभस्स' लाभस्य पा कृते लुब्धो लोलोऽलीक भणेत् ॥ २ ॥ 'उडीए' ऋद्धः सपत्तेः ' सौक्खस्स' सौख्यस्य या कृते लुब्यो लोलोऽलीक भणेत् ॥३॥ भक्तस्य पानस्य या कृते लुब्यो लोलोऽलीक भणेत् ॥ ४॥ 'पीढस्स' पीठस्य 'फलगस्स' फलकस्य पा कृते लुब्धो लोलोऽलीक मणेत् ॥५॥ तथा'सेज्जाए' शग्यायाः 'सथारगस्स ' सस्तारकस्य वा कृते लुब्धो लोलोऽलीक भणेत् ।। ६ ।। ' त्यस्स' वस्त्रस्य-चोलपटादे ' पत्तस्य' पारस्य वा कृते लुब्धो कृट वचन बोल सकता है (खेत्तस्स वत्थुस्स वा करण लुद्धो लोलोअलिय भणेज्ज ) कटवचन-झूठवचन बोलने के निमित्त ये उसे होते हैं-वह लोभी मनुष्य चञ्चलचित होता हुआ खेत अथवा निवामभूमि-गृह के निमित्त झूठवचन कह सदता है (कित्तीए लाभस्स चा करण लादो लोलो अलिय भणेज्ज) अपनी कीर्ति अथवा लाम के निमित्त असत्यभापण कर सकता है ( इड्डीए सोक्खस्स वा कएण लुद्धो लोलो अलिय भणेज्ज) ऋद्धि-सपत्ति अथवा सौख्यके निमित्त असत्यवचन पोल सकता है । (भत्तस्स पाणस्स वा कएण लुद्धो लोलो अलिय भणेज्ज ) आहार अथवा पानी के निमित्त असत्यवचन कह सकता है (पीढस्स फलगरस वा कएण लदो लोलो अलिय भणेज्ज) पाट अथवा बाजोठ के निमित्त असत्यवचन कह सकता है, (सज्जाए सवारगरस वा करण लद्धो लोलो अलिय भणेज्ज) शय्या अथवा सस्तारक के लिये वह लोभ चचलचित्त होकर असत्य बोल सकता है ( वत्थस्स पत्तस्स वा करण वा कएण लुद्धो लोलो अलिय भणेज्ज" तेनेट क्यन-असत्य पयन मासवाना નિમિત્ત આવા હેાય છે–તે લેભી મનુષ્ય ચચલ ચિત્ત થતા ખેતર અથવા निवासमूभि-धरने निभित्री असत्य क्यन डी श छ “ कित्तीए लाभस्स वा कएण लुद्धो लोलो अलिय भणेज्ज" ते पातानी जीत मथवा सामने भाटे मसत्य मासी शछे “इडिढए सक्सिस्स वा कएण लुजो लोलो अलिय भणेज्ज" द्धि सपत्ति अथवा सुमने माटे ते मसत्य पयन मानी श छे " भत्तस्स पाणस वा कएण लुद्धो लोलो अलिय भणेज्ज" माडा२ मथवा पीने भाटे ते असत्य १२न डी श छे 'पीढस्स फलगस्स वा कएण लुद्धो लोलो अलिय भणेज्ज " पाट २अथवा ५ने निमित्त ते सत्य क्यन मोदी शछे " सज्जोए सथोरगस्स वा करण लुद्धो लोलो अलिय भणेज्ज" शय्या अथवा सस्ता२ माटे ते सामी यस वित्त यता मसत्य मोसी छे “चत्थास
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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