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________________ ६८२ प्रश्नप्यावरणसरे दोपसूचक,पाप-परमर्मोद्वाटक,गटु कम्-उद्वेगजनम् चपलम् असमीक्ष्य प्रोक्त यद् पचन तस्मात्-मुनीना परिरक्षणा म् , अर्थात्-मुनिभिरीश पचन न वाच्य मिति हेतोः 'भगाया' भगरता 'सुफरिय ' मुकथितम् । कथम्भूत प्रवचन मुकथितम् ? इत्याह- जगहिय ' आत्महिनम् - आत्मनो हितकारकम् , 'पेन्चाभारिय ' प्रेत्य भारिफनन्मान्तरेऽपि शुभफलदायम् , अतण्य 'आगमेसिमद' आगमिप्यद् भद्रम् भरिप्यत्कल्याणकारसम् , तथा-'मृद्ध शुद्ध निर्दोपस्वात् , पुनः 'नेयाउय नैयायिकन्याायुक्तम् , पीतरागभापितसाद , तथा-' अङ्क डिल' अकुटिलम्माजुभाषजनकत्वात् , ' अणुतर' अनुत्तरम् सर्वश्रेष्ठत्वाद, तथा-सम्पदुक्खपागण' सर्वदुःखपापानां-सामजनशानाररणीयाधष्टविध कर्मणा 'दिउसमण' व्युपशमनम् तर्पयाप्रशमनकारकम् । एनाटग माचन भगवता कथितमित्यर्थः ।। सू-३ ॥ कटुक, चपल, वचनो से मुनिजकों की रक्षा होती रहे इस अभिप्राय से (भगवया) भगवान ने (सुरुरिय) अच्छी तरह से प्रतिपादित किया है। असदभूत अर्थ को कहने वाला पचन अलीक, पर दोप सूचकवचनपिशुन. पर के मर्मका उद्धाटक वचन पम्प, उद्वेग को पैदा करन वाला वचन कटुक, और विना विचारे बोला गया वचन चपल कहलाता है। यह प्रवचन (अत्तरिय) आत्मा का हितकारक है तथा (पेचा भाविय) जन्मान्तर मे भी शुभफल का देनेवाला है। (आगमेसिभ६) इसीलिये इसे भविष्यत् में कल्याणकारक कहा गया है। (सुद्ध) इस प्रवचन में किसी भी प्रकार का पूर्वापरविरोधरूप दोष नहीं होने से ये शुद्ध हैं। (नेयाउय ) यह वीतराग द्वारा भापित होने के कारण न्याययुक्त है । तथा (अकुडिल ) इससे नाजुभाव उत्पन्न हो जाता है इसलिये यह अकुटिल है। (अणुत्तर ) इस के जैसा उत्तम और कोई કઠેર, કડવા, ચપલ વચનેથી મુનિજનનિ રક્ષા થયા કરે તે ઉદેશથી 'भगवया" लगवाने "सुकहिय" सारी रीते प्रतिपाहन यु छ भमभूत मथने ना३ वयन अलीक, ५२होष सूयः पयन पिशुन, मीना भमन भुस पातु वयन परुप, द्वेग हा ४२नार पयन कटक मने विद्यार्या विना घालाये क्यन चपल उवाय छ मा प्रवन्धन "अत्तहिय" मामाने भाट हत तथा “पेच्चाभाविय" माता पार ना३ छ " आगमेसिभद" ते २ तन मविष्यमा या[१२४ व्यु छ “सुद्ध આ પ્રવચનમાં કોઈ પણ પ્રકારે પૂર્વાયરવિધરૂપ દોષ નહી હોવાથી તે "नेयाय" ते वीतराग द्वारा उडवायेद डावाथी न्याययुध्त छ तथा "अकुडिल" तेनाथी भाव सरताप थायो तथा ते पारस , "अणुत्तर " तेनान श्रेष्ठ मान ६ प नी तेथी ते मनुत्तर में
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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