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________________ ६४० मन्नध्याकरण अथ पञ्चम निक्षेपभानामाद-'परम' हत्यामूलम् - पंचम पीढफलग सेज्जा संथारगवत्थपत्तकंचलदंडगरयहरण चोलपट्टगमुहपत्तिगपायपुछणाद्धि, एयपि संजमस्स उबवूहणट्टयाए वायातवद समसगसीयपरिरक्खणट्टयाए उवगरण रागदोसरहिय परिहरियव्वं, सजणं निच्च पडिलेहण पफोडणापमज्जणाए अहो य राओ य अप्पमत्तेण होइ सनयं निक्खियव्वं च गियिव्त्र च भायण भडोबहि उबगरणं । एवं आयणभंडणिक्खेवणासमिइजोगेण भाविओ भवइ अतरप्पा असवलमसंकिलिहनिव्वणचरित्त भावणाए अहिंसए सजए सुसाहू | सू० १० ॥ टका - ' पचम' इत्यादि " पचम' पञ्चमीमादाननिक्षेपरामित्तियां भारनामाह-' पीढकलगसेज्जा सथारगप्रत्थपत्तकालदडगरयहरणचोलपट्टगमुहपौत्तियपाय पुणाई पीठफलक शग्यासस्वारक रखपान कम्पलदण्ड करजोहरण चोलपट्टकमुग्वपोति पादमञ्छनादि, तत्र - पीठ = काष्ठमय 'पाट ' इति प्रसिद्धमासनम्- ' फलक = 'नाजोट " बन जाता है | और सुसाधु नामगे सफल करता है । ॥ सु०९ ॥ अब सूत्रकार पाचवी जो निक्षेपभावना है उसे प्रकट करने के लिये सूत्र कहते हैं - ' पचम' इत्यादि । टीकार्थ - (पचम) पाचवी भावना आदान निक्षेपसमितिरूप है वह इस प्रकार है (पीढफलग सेज्जासारगवत्थपत्तकबलदडगर यह रणचोलગ્રહણ કરેલ અહિંસાવ્રતનુ અતિચાર આદિ દોષાથી રક્ષણ કરતા થ સાચા અહિંસક સત અની જાય છે અને સુસાધુ નામને સફળ કરે છેાસૂ લા હવે સૂત્રકાર પાચમી જે નિક્ષેપ ભાવના છે તેનુ વધુન કરવાને માટે उहे छे-" पचम " इत्याहि टीजर्थ—' पचम ” पाथभी भावना आदाननिक्षेपसमिति नामनी छे ते या प्रभा छे-पीढ फलग सेज्जासधारगवस्थपत्तकनल डगरयहणचोलपट्टगमहपत्तिग
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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