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________________ १३० प्रायानसून टीका-'चउत्य ' चतुर्ग भावनागेपणापामाद - ' आहारएमगाए । आहारैपणया ' मुद्ध' शुद्ध-निग 37 उ मेर ' गसियय ' गोषित व्यम् । यथा-लनान्नक्षेत्रातणादान, तथैन साधुनापि गृहस्थायं निष्पादितमन्न स्तीक स्तोक एपेपणीयमिति गान. | Tीमः सन गंपयेत् याह-'अण्णा' अज्ञात:-'निरोऽय मानित 'लादिरूपेग दारगानः, अहिए' अक पिता- धनिकोऽह प्रजनित ' त्यामरुटितः, 'असिह' अगिटा. 'उग्रव शीयोऽय मोगशीयोऽय' मिनि दायकायापनियोधित', तथा-'अदीणे 'अदीनः अब सूत्रकार चौथी एपणा समितिरूप भावना को करते हैं - 'चउत्य' इत्यादि। टीकार्थ-(आरमणा मुद्ध उगवेसियन) साबु आमरण पणा से शुद-निर्दीप उन्ध-घोडा गोडा लेने रूप भिक्षा की गवेषणा करे। तात्पर्य हमका यह है कि जैसे-जूने गये क्षेत्र से कणो का आदान होता है उसी तरह मातुको भी गृत्स्थ के लिये निष्पादित अन्न की स्तोक २ अल्प २ रूप में गवेपणा करनी चाहिये । जयब ह भिक्षा की गवेषणा करे तर उसे (अण्णा) अज्ञात होना चाहिये-दाता उसे यों न समझे कि यह धनिक होकर प्राजित हुआ है, इत्यादिरूप से दाता से उन्हें अपरिचित रहना चाहिये। (अमरिण) अकथित होना चारिये में धनिक या गरीब नहीं या फिर भी दीक्षित हुआ इस प्रकार का अपना परिचय उसे दाता को नहीं देना चाहिये। (असिहे) अशिष्ट रहना चाहिये-यह सामु उग्ररशीय हे, भोगवशीय है, इस रूप से दाता के वे सूत्रता मेषा समिति नामनी याथी भावना मताछ “च उत्थ" ध्याla A.-" आहारएसणाए सुद्ध उछ गवेसियव्व " साधु माहारेषाथी શુદ્ધ-નિર્દોષ લન્ડ શેડી ડી માત્રામાં ભિક્ષાની ગવેષણ કરે તેને ભાવાર્થ એ છે કે જેમ લાયેલ ખેતરમાથી કણનું આદાન થાય છે, એ જ રીત સાધુએ પણ ગૃહસ્થને માટે તૈયાર કરેલ અગ્નિ ડી ચોડી માત્રામાં ગષણા १२वी ने न्यारे ते लिखानी गवेषाए। ४२ त्यारे तो “अण्णाए " અજ્ઞાત રહેવું જોઈએ દાતાને તે વાતની ખબર ન પડવી જોઈએ કે તે ધનિક સ્થિતિમાથી દીક્ષિત થયેલ છેઆ પ્રકારે તેણે દાતાથી અપરિચિત રહેવું नमे “ अकहिए " मथित २ नये-" पनि उता गरी न હતે છતા પણ મે દીક્ષા લીધેલ છે ” એ પ્રકારને પિતાને પરિચય તેણે हातानोन नही " आस" मशिष्ट २३ नये " 20 साधु ઉગ્રવ શાય છે, ભગવસીય છે,” તે પ્રકારે દાતા આગળ તેણે પ્રગટ થવું
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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