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________________ ५३६ प्रश्न याकरणसूत्रे स्ता व्याप्ताः, तथा ' अत्ताण अपिग्गहिया' आत्मनाऽनिगृहीत अगीकृतात्मानः करेंति' कुर्वन्ति । किं कुन्ति ? इत्याद~~'कोहमाणमायालोमे' क्रोधमाजमायालोभान, कीदृशान् ? 'अकिनणिज्जे' अकीर्तनियान्-अपाच्यान् । तथा 'परिग्गहे चेन' परिग्रहे एव 'हुति' भान्ति, 'नियमा' नियमावनिश्चयतः, कानि कानि भवन्ति ? त्याह ' सल्ला शल्यानि = मायानिदानमिल्या. दर्शनरूपाणि त्रीणि, 'दण्ड य' दण्डाभ-दुप्पणिहितमनोपायरूपाः, 'गार• वाय' गौरवाणि चन्मद्धिरमसातरूपाणि च कसायसण्णा य 'पायसज्ञाश्च कपाया-मतिताः, सज्ञा:-आहार मेयुनमयपरिग्रहादयः, तया-कामगुणअण्हगा य कामगुणावाश्च कामगुणाश दादयस्त एप आश्रमाआवद्वाराणि 'इदिय ' इन्द्रियाणि-अमवृत्तानि इन्द्रियाणि, 'लेसाओ' लेश्याः अप्रशस्ता अधिक आसक्ति, लोभ-लालच, इन सब से घिरे रहते है (अत्ताणा अंणिग्गहिया) इन की आत्मा इनके वश में नहीं हो पाती है। और इस तरह ये परिग्रह की ममता में फंसकर (कोरमाणमायालोभे) क्रोध, मान माया और लोभ जैसो कषायो को कि जो (अकित्तणिज्जे ) शन्दो से प्रकट नहीं की जा सकती हैं ( करेंति ) करते रहते है । ( परिग्गहे चेव हुति नियमा सल्ला, दडा य गार वा य कसायसण्णा य कामगुणअण्हगा य इदिय लेनाओ सयणसपओगा सचित्तचित्तमीसगाइ दवाइ अणत गाइ परिघेतु इच्छति) इस परिग्रह मे ही नियम से माया, मिथ्यादर्शन और निदान, ये तीन शल्य रहते हैं । मन, वचन और काय की दुष्ट तीरूप व्यापार रहता है। ऋद्रि रस सातरूप गौरव रहता है। अनंता. नुबंधी आदि कपायें, आहार, भय, मैथुन, और परिग्रह ये चार सज्ञाऐं, सोल, मे पधाथी घरायस २९ “ अत्ताण अणिग्गहिया "मनु भन तभना भूभाडा नथी, भने मा शत परिसडनी ममतामा साधन “कोहमाण मायालोमे" अध, मान, भाया भने सोलरवा पाय २“अकित्तणिज्जे' शही द्वारा प्रगट री शात नयी " करे ति" तभनु सेवन ४२ छ “ परि गहे चेव हुति नियमा सण्या, दडाय गारवा य कसोय सण्णाय कामगुणअण्ड गाय इदियलेसाओ सयणसपओगा मचित्ताचित्तमीसगाइ व्वाइ अणतगाइ परिघेतु इच्छति" मा परियडमा ४ नियमथी । भाया, भिथ्याशन मन નિદાન, એ ત્રણ શલ્ય રહે છે મન, વચન અને કાયની દુષ્ટતારૂપ પ્રવૃત્તિ રહે છે અદ્ધિ રસ સાતરૂપ ગૌરવ રહે છે અન તાજુબ ધી આદિ કવા, આહાર ભય, મિથુન અને પરિગ્રહ એ ચાર સંજ્ઞાઓ, શબ્દાદિ વિષયરૂપ આસ્રવ,
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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