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________________ ५३२ | স্বপ্নবাজলে 'अतिव्रजन्ति-माप्नुवन्तीत्यर्थ ,कीटश ससारम् ? इत्याह-'सन्यदुक्समनिलयण' सर्वदुःखसनिलयनम्बसार्वदुःखाना सनिलयनम् मायभूतम् । तथा-'परिग्गहस्स य अढाए' परिग्रहस्य च अर्थाय-परिग्रह लक्षिकृत्येत्यर्थः), 'बहुजगो' बहुजनाजनसमुदायः 'सिप्पसय ' शिल्पगत-आचार्योपदशगम्यमनेकविध शिल्प 'सि क्खते ' शिक्षते । तथा 'मुनिउणहओ ' मुनिपुणा: शिक्षार्थिना मुनैपुण्यापायकाः 'लेहाइयाओ' लेखादिका: लेस आदी यास तास्तथोक्ता , 'सउणरुयानसा गाओ' शकुनरुतारसाना. शकुनाना-पक्षिणा रुत जल्पितम रसानेऽन्ते यासां तास्तथोक्ताः, 'गणियप्पहाणाओ' गणितमधाना=गणित प्रधान यास तास्तथोक्ता, यावत्तरि' द्विसप्तति कलाओय' कनाथ शिक्षते । तथा- रतिजणणे' रतिजननान रतिराग जनयन्ति ये ते रविजननास्तास्तथोक्तान 'चउसहि च - महिला गुणे' चतुः पठि च महिलागुगान्बात्स्यायन मोक्तान नृत्यगीतादीन् , तथा 'सिप्पसेर' शिल्पसेवा-शिल्पेन सेना ता तथोक्ताम् , येन शिल्पेन राजसेवा 1 परिग्रही जीव (सव्वदुक्खसनिलयण ) समस्त दुःखो के आश्रयभूत इस (ससार) चतुर्गतिरूप ससार में (अतिवयति) भटकते रहते है। तथा (परिग्गहस्सय अट्ठाए वहुजणो सिप्पसय सिक्खण) इस परिग्रह के निमित्त को लेकर ही बहुत से लोग कलाचार्य के उपदेश से प्राप्त होने • वाले अनेक शिल्पो को सीखते है तथा (सुनिउणाओलेहाउयाओ सउ ५ णरुयावसायाओ गणियप्पागाओ यावत्तरिकलाओ) अपने में अच्छी (र तरह से निपुणता बढाने वाली लेखकला से लेकर शकुनरुत पर्यय७२बहत्तर कलाओ को जिने किमे गणितप्रधान होता है सीखते हैं तथा (रइजणण - चउसहि च महिलागुणे ) रागजनक नृत्य, गीत आदि स्त्रीयों से सबंध रखने वाली चौसठ कलाओ को कि जिनके प्रदर्शक वात्स्यायन ऋषि सो परियडी 4 " सब्बदुक्खसनिलयण " समस्त मान माश्रयभूत मा " ससार " या२ गतिवाया ससारमा " अतिवयति" मट४ ४२ छ, तथा "परिग्गहस्सय अदाए बहु जणो सिम्पसय सिक्सए " मा परि नाम * ઘણું લોકે કલાચાર્યના ઉપદેશથી પ્રાપ્ત થતી અનેક કળાઓ શીખે છે, તથા - "मुनिउणाओ लोहाइयाओ स ऊणरुयोवसायाओ गणियप्पहाणाओ बावत्तरिकलाभा, • પિતાની નિપુણતા સારી રીતે વધારનારી લેખન કળાથી લઈને શકુનરુત સુધી ૭૨ બેતેર કલાઓ કે જેમાં ગણિત મુખ્ય હોય છે તે બધી કળાઓ શીખે છે, तथा "रइजणणे चउसदिय महिलागुणे" स नई नृत्य, गीत मा श्रीमा साथ - સ બ ધ રાખનારી ચેસઠ કલાઓ શીખે છે એ કલાઓના મદર્શક વાસ્યાયન ऋषिता तथा “सिप्पसेव " मेवी शि५ विद्यामा शीछे २ प्रकार
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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