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________________ ५०५ सुदर्शनी टोका १० ५ सू० १ परिग्रहस्वरूपनिरूपणम् त्वपत्रपल्लवाः, तेपा धर-पारमा । तपा 'जस्स' यम्प परिग्रहतरोः ' कामभोगा' कामाभोगा एव 'पुप्फफल' पुष्पफलानि । तपा-'आयासविमरणाकलहपापियग्गसिहरो ' आयामविमरणालहमकम्पिताग्रशिखरः-आयास:शरीरश्रमः, विमरणा-मानसी पीडा, कलहः पचनभण्डनम्, एत एप प्रकम्पितमनशिखरम्-अग्रभागो यस्य सः, तथा 'नरवसपूजिभो' नरपतिसपूजिता भूपतिपरिसेवितः, तथा - हुजणस्स हिययदडओ' बहुजनस्य हदयदयितःअनेकजनवल्लभः इत्ययः, तपा-अय परिग्रह तरु:-'इमस्स' अस्य-प्रत्यक्षस्य 'मोपसारमुत्तिमग्गस्स ' मोक्षपर मुक्तिमार्गस्य-मोक्षस्य -श्रेष्ठो यो मुक्तिरूपो निर्लोभतारूपो माग -उपायस्तस्य 'फलिहभूमो' अर्गलाभूता-मोक्षस्यावरोधकफाष्ठभूतो वर्त्तने, इत्येव स्वरूप 'चरम अहम्मद्वार' चरममधर्मद्वारम् अन्तिममधमद्वामम् । एतत्कयनेन यादृशेति प्रथममन्तरद्वारमुक्तम् ।। सू०१॥ मायाचारी ही जिसकी चाल है, पत्र है और पल्लर हैं । (जस्स पुष्फफल काम भोगा) कामभोग ही जिसके पुष्प ओर फल हैं। (आयासविलूरणाफलहपापियग्गसिहरी) आयास शारीरिक श्रम वितरणा-मानसिक पीडा, और कलह,ये ही जिस के प्रकपित अग्रभाग, (नरवहसजिओ) तथा यह परिग्रहरूप वृक्ष भूपतियों द्वारा परिसेवित है, और (चठ्ठजणस्सदिययदइओ) अनेक जनों को अत्यत प्यारा है, (इमस्स मोक्खवर मुत्तिमग्गस फलिहभूओ) तथा यह परिग्रहरूप वृक्ष मोक्ष के श्रेष्ठ मुक्तिरूप-निर्लोभतारूप-मार्ग का अर्गला रूप है । (चरिम अहम्मदार) ऐमा यह पांचवा अन्तिम अधर्मद्वार है।। भावार्थ-परिग्रह नाम ममत्वभाव का है। इसकी दूसरी सज्ञा मृ» भी है । इस मारूप तृष्णा का अन्त नहीं है। परिग्रह के भायायारी तनी छोरी पान भने ५८स छ “ जस्स पुप्फफल कामभोगा" भाग १ तेना पु०५ भने ५ छ “ आयास विसूरणाकलहपकपियग्ग सिहरो " मायास-शागर श्रम, विसू२६।-मानभि पाड। मने ४१७, मेरा तेना सायमान समयमाग छ “ नरवइ सपूजिओ" तथा मा परि ३५ वृक्षनु नृपो सेवन ४२ छे भने “बहुजणस्स हिययदइओ" ते अने सोने अत्यत प्रिय साग छ, “ इमस्स मोक्सवरमुत्तिग्गरस फलिहभूओ" तथा ॥ પરિગ્રહ રૂપ વૃક્ષ મોક્ષના શ્રેષ્ઠ મુક્તિરૂપ-નિર્લોભતારૂપ માર્ગના આડે આગ– माया छ “चरिम अहम्मदार " मे २) पायमु द्वार छ ભાવાર્થ-મમત્વ ભાવને પરિગ્રહ કહે છે તેનું નામ મૂછ પણ છે આ મૂચ્છરૂપ તૃણાને પાર જ હોતું નથી પરિગ્રહના પજામાં ફસાયેલ જીવ प्र. ६४
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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