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________________ - -- सुर्शिनी टीका म० ४ सू० ११ युगलिकस्वरूपनिरूपणम् युक्तानि यानि फलानि तेपामाहारिणः, 'तिगउय समुन्छिया' त्रि गव्यूत समुच्छ्रिता:-त्रि गन्यूतिपरिमाणोन्नतशरीराः, तिपलिओवमहिइया' त्रिपल्योपम स्थितिकाः त्रिपल्योपमसलस्थितिमन्तः ' तिनि य पलि भोरमाइ परमाउ पालइत्ता' त्रीणि च पल्योपमानि परमायपि परमायुष्यकाल पालयित्वा-उपभुज्य 'ते दि' तेऽपि-उत्तरकुरुदेवकुरुनिमामिनो युगलिका मनुष्या अपि, ' कामाण अवितित्ता' कामानामपितृमाः - अवितृप्तकामभोगा एव, 'उवणमति मरणधम्म' मरणधर्ममुपनमन्ति-इति पूर्ववत् ।। मृ० ११ ॥ ___ साम्प्रतं तेपा स्त्री पियेप्याह-'पमया पि' इत्यादि मूलम्प मयाविय तेसि हुति सोम्मा सुजायसव्वगसुदरीओ पहाणमहिलागुणेहि जुत्ता अइकंत-विसप्पमाण मउयसुकुमाल- कुम्मसठिय सिलिट्ठचलणा उज्जुमउयपीवर सुसहतगुलीओ अब्भुण्णाय । रइयतलिण-तंवसुइ-निद्धनखा रोमरहियवसाठिय-अजहण्ण-पसत्थलक्खण-अकोप्प वाले फलों का आहार करते है। (तिगाउयसमुच्छिया ) तीन कोशका इनका शरीर होता है। (तिपलिओवमाइ परमाउ पालहत्ता) तीन पल्य की इनकी उत्कृष्ट आयु होती है । इस प्रकार की स्थिति से युक्त यने हुए ये उत्तरकुरु और देवकुरु के निवासी मनुष्य भी तीन पल्य की उत्कृष्ट अपनी आयु का भोग करके भी (कामाण अवितत्ता) कामसुखो में अतृप्त यने रहते है । अर्थात्-तीन पल्य कालतक कामसुखों को भोगते रहते है फिर भी इनकी काममुखों को भोगने की लालसा शात नहीं हो पाती हैं । अन्त में ( ते वि) वे भी काम से अतृप्त ही मरण धर्मको प्राप्त करते है । सू०११॥ तेसा ममता २सवाणा मानो माहार ४२ छ “तिगाउयसमुच्छिया" त्रय आपनु तमनु शरी२ डाय छे "तिपलि ओरमाइ परमाउ पालइत्ता" પલ્યનું તેમનું ઉત્કૃષ્ટ આયુષ્ય હોય છેઆ પ્રકારની સ્થિતિ વાળા તે ઉત્તર કુરુ અને દેવકુરુ નિવાસી લોડે પણ ત્રણ પત્યનું પોતાનું આયુષ્ય ભોગવવા छत पy " कामाणा अवितत्ता" म माया मतृप्त २९ सेट ત્રણ પત્ય કાળ સુધી કામ ભેગો ભગવ્યા છતા પણ ડામભેગો ભોગવવાની तेभनी ससा त थ शती नथी छेक्टे “ ते वि" तेसो पY जमिनो ગોથી અતૃપ્ત રહીને જ મૃત્યુ પામે છે. સૂ-૧૧ છે
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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