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________________ सुदर्शिनी टीका अ० ४ सू० १० युगलिकस्वरूपनिरूपणम् ४५१ सुजाता सुन्दरः पीनः-पुष्टश्न कुक्षिः उदरैकदेशो येपाते तथा । तथा 'झपोयरा' सपोदराः-झपस्योटरसदुदर-येपा ते तथा कृशोदरा इत्यर्थः, पम्हवियडणाभी' पद्मविस्टनाभया पावत्-कमल कोपरत् विकटा-मुन्दरा नाभि पेंपा ते तथा, 'सनयपासा' सनतपा =पुष्टत्वादधो नमत्पार्धमागाः 'सगयपासा' सङ्गतपार्था:-मृमिलितपाश्चमागाः, अतएव 'सुदरपासा' सुन्दरपार्धाः 'सुनायपासा' मुगातपार्धा = समस्थितपार्थाः ‘मियमा'यपीणन्डयपामा' मितमात्रिकपीतरविदपार्धाः-मिती-मानोपेती, मात्रिको = मानायुक्तौ-परिमाणसपनों पीनौ= मुपुप्टी रतिदी = रमणीयौ पार्श्वभागों येपा ते तया 'अकरटुयणगरुयगनिम्मलसुजायनिरुवहयदेहपारी ' अफरण्दुकनकरुचकनिर्मलमुजातनिरुप -- हवदेहधारिणः = तन अफरण्डुक = पुष्टत्वादनुपलक्ष्यपृष्टपार्थाद्यस्थिक तथा कनकरचरनिर्मल, कनारुचक-मुवर्णाभरण तद्वत् निर्मल सुजात शोभन निरुपहत चम्नीरोग देह शरीर धारयन्ति ये ते तथा । तथा 'कणगसिलातल्पसत्यसम की कुक्षि के समान सुन्दर और पुष्ट होती है। तथा (असोयरा) जिनका उदर मत्स्य के उदर के समान कृश होता है। तथा (पम्हवियडणाभी) जिनकी नाभि कमल के गोप की तरह गभीर होती है। ती ( सनयपासा) पुष्ट होने के कारण जिनके दोनो पार्वभोग नीचे की ओर झुके रहते हैं इसीलिये (सगयपासा) जो परस्परमें मिले हुए जैसे प्रतीत होते हैं और यडे मुहावने लगते हैं तथा (सुजायपासा) जिनके दोनों पोदय भागोंका आकार भी बडा सुहावना लगता है, तयारमिनाइय पीणरइय पासा) वे दोनों पावभाग मान और प्रमाणसे युक्त और पीन पुष्ट होते हैं तथा रमणी होते है । तथा(अकरड-कण-गरुयग निम्मल सुजाय -निरुवय-देहधारी) पुष्ट होने के कारण जिनकी रीढको और पार्श्वभाग की अस्थिया दिखलाई नहीं देती है, तया जो सुवर्णाभरण के ભાગ) મચ્છુ તથા પક્ષીની કુલિ સમાન સુંદર અને પુષ્ટ હોય છે તથા “झसोयरा" भनु GE२ भत्स्यन C४२ समान २० अाय छे तथा " पम्ह रियडणाभी" भनी नालि भगनावी असार साय छ, नया “स नयपासा" पुष्ट हावाने मना मन्ने पावलागी नीयनी मान्नु झुंडेसर २९ छ, भने तेथी " स गयपासा" मापसभा भजी गया य मेवा लागे छे तथा घर मुहर लागे छे तय " मुजायपासा"मना मने पाच मागी माना मा४२ ५ घो। मुह दाणे छ, तथा 'मियमाइयपीनरइयपासा" ते मन પÜભાગે પ્રમાણુ અને માનથી યુક્ત-પ્રમાણસરના, અને પીન-પુટ અને भीय खाय छ “ अफर डु-कण गरुयग निम्मल सुजाय निरुवहय देहधारी" શરીર પુષ્ટ હેવાને કારણે જેમના કરડ તથા પાસળીના હાડકા દેખાતા નથી
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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