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________________ ...... प्रभायाकरणमा पणियमहुरगमीरणियोसा । शारदनास्तनितमधुरगम्भीरस्निग्धयोपाः = शारद-शरत्कालिक यनपस्तनित = नूतनो मेघ पनिः तन्मधुरः-पर्णमुग्वकरः गम्भीरः स्निग्धः स्नेहजनकः घोपा शन्दो येपा ते तथा, 'नरसीहा' नरसिंहाःनरेषु सिहाईर, एतत्साधर्म्यमाह-'सीहविप मगई ' सिंहविक्रमगतयः सिंहम्येव विक्रमः पराक्रमः गतिश्च येपो ते तया 'अत्यमियपपररायमीहा' अन्तमित प्रवरराजसिंहा अस्तमिताभस्त प्रापिताः पराजिताः प्रवरा:-रिशिष्टाः राजसिंहाः शूराजानो यैस्ते तया। सोम्मा' सौम्या सौम्यस्पाः ' वारवई पुण्णचदा' द्वारावती पूर्णचन्द्राद्वारकापुरः आढादपत्ता पूर्णचन्द्र स्वरूपा, 'पुन्चकयतयप्पभावा' पूर्वकततप प्रभागात् = पूर्वमनकवतपो माहात्म्यात् 'नि विद्वसचियमुहा' निषिष्ट सचिवमुखाः निविष्टानि-लयानि सनितानि-पूर्वभोपार्जितानि मुखानि यस्ते तया ' अणेगाससयमाऊचतो' अनेक वर्षशता युष्मन्तावसहस्राघायुष्काः, 'मज्जाहिय जाणश्यपहाणाहिं ' मार्याभिश्व जनपदमहातेजस्वी रोते हैं तथा (सारयणवधणियमदुरगमीरणियोमा) जिनका योलना शरदकालीन नवीनमेघध्वनि के जैसा कर्णसुखार एव स्निग्ध-स्नेहजनक होता है, तथा (नरसीहा) जो मनुष्यों के बीच में सिंह के जैसे रोते हैं तथा (सीरविकमगई) जिनका पराक्रम और गमन सिंह के समान होता है,तथा (अत्यमियपवररायमीरा) जो अपने पराक्रम से-प्रवर राजसिंरो को अस्तमित-पराजित-कर देते है। तथा जो (सोम्मा) सौम्यरूप रोते हैं, एव (वारवईपुण्णचदा) द्वारकापुरी के आह्लादक होने के कारण जो पूर्णचन्द्रस्वरूप रोते हैं (पुवायतवप्पभावा निविट्ठसचियसुहा) तथा-जो पूर्वकृत तप के प्रभाव से पहिले भवों में उपार्जित सुग्वों को प्राप्त करते हैं, तथा (अणेगवाससयमाउन्चता) जो सैकड़ो वर्षों की आयुवाले होते हैं, तया ( भज्जाहिय जणवयप्पहाणाજેમના શબ્દ શરદઋતુના મેઘધ્વનિ જેવા મધુર અને નિષ્પ-નેહ જનક ता, तेथी " नरसीहा" २ मामानी ये सिड समान ता तथा “ सीह विकमेगई " भनी गति भने भनु' ५२ सि ममान ता, तथा " अयमियपर्वररायसीहा "२ पोताना पराभ प श्रेड रामिडोन मडात उरतो तो 'तारे “सोम्मा" सौम्य हुता, मन " वारवई पुण्णवदा" बारिशमशन मान मापना२ डावाने ४२णे २ पूर्ण यन्द्र तो, “पुवकय तवापभावा निविट्ठसचियसुहा" तथा पूर्व ४२सा तपना प्रमाथी मार्ग मना सवाभा Sulf 'सुभे पास ४२ छ तथा “ अणेगाससयमाउन्वतो" २५ वर्षना मायुष्य वाणा डाय छ, तथा " भज्जाहियजणवयप्पहाणाहि
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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