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________________ ४३४ प्रश्नध्याकरण वियसत विचितवणमाल रइयवच्छा अहसयविभत्तलखणपसत्थसुंदर - विराइयंगुवगा मत्तगयवरिंद-ललिय - विक्रम विलसिय-गईकडिसुत्तकनील पीय-कोसेज्जवाससा पवरदित्ततेया सारयणवथाणिय महरगंभीर-गिद्धघोसा नरसीहा सीहविकमगई अत्थमिय पवररायसीहा सोम्मा वारवई पुण्ण चंदा पुवकयतवप्पभावा निविसंचियसुहा अणेगवास सयमाउन्वतो भज्जाहियजणवयप्पहाणाहिं लालियता अउल-सदफरिस-रसरूवगधे य अणुभवित्ता ते वि उवण मंति मरणधम्म अवितित्ता कामाण ॥ सू० ८॥ टीका:- 'ताहिय' ताभित्र वक्ष्यमाणविशेषणविशिष्टाभिश्वामराभिरुरिक्ष प्यमानाभिः सुख शीतलपावरीनिवागावलदेवासुदेवा, इति सम्पन्धः। कयम्भूताभिश्वामराभि. ? इत्याह-'पारगिरिकुहरविहरणसमुद्धियाहिं' प्रवरगिरिकुहरविहरणसमुद्धृताभिः अमरगिरिणां यानि कुहराणि-गहराणि तेषु यद् फिर वे कैसे होते हैं सो फरते हैं-'ताहि य' इत्यादि। टीकार्थ:- (ताहि य उक्सिप्पमाणाहिं चामरादिं सुरसीयल. वाय वीइयगा) इन वक्ष्यमाण विशेषणों से विशिष्ट ढोले गये चामरा की सुखप्रद शीतल वायु से जिनका अग वीजित होता रहता है ऐसे पलदेव और वासुदेव भी काम से अतृप्त ही मरण को प्राप्त करते हैंऐसा सयध यहा भी लगा लेना चाहिये। अय सूत्रकार चामरों के विशेषणो को स्पष्ट करते हैं - (पवरगिरिकहरविहरणसमुद्धियाहि ) जव चमरी गाय उत्तम पर्वतों की गुफाओं में विचरण करती है तब वह ७ ते उप राय छे तेनु qधु १ २ छ-" ताहिय" त्याल साथ-"ताहि य उक्सिप्प माणाहिं चामराहि सुहसीयल्वायवीइ यगा" मा પ્રમાણેના વિશેષણવાળા, ચામરેવડે ઢાળવામાં આવતા આનંદદાયક શીતળવાય વડે જેમના અને વાયુનું સેવન કરી રહેલા છે એવા તે બળદેવે અને વાસુ દેવ પણ કામગથી અતૃપ્ત રહીને જ મૃત્યુને પળે પળે છે એ સંબધ અહી પણ સમજી લે હવે સૂત્રકાર ચામરેના વિશેષાની સ્પષ્ટકા કરે છે "पवरगिरिकुहरविहरणसमुद्धियाहिं" न्यारे यभरी गाय उत्तम पक्तानी
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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