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________________ ४२२ | গল্প प्रद्युम्न - मतिरसाराऽनिन्दनिपधोल्युक-सारण-गज-मुग्यदुर्मुखादीना जायगाण' यादवाना = याशिना अद्गुहाग ' अर्द्धचतुर्यानामपिसार्धविस्णामपि 'कुमारकोडीण कुमारगोटीनां 'हिययदाया' दययिता:हृदयप्रियाः 'देवीए रोहिणीए देवी देवईए य आणदस्यियमापनंदणारा' देव्या रोहिण्या: बलदेवमातुः देव्यादेवक्या-कृष्णमाता आनन्दरपो यो हृदयमाव स्तस्य नन्दनकरागृद्धिकारकाः 'सोल सरायरसहरमाणुलायमग्गा' पोडश राजररसहसानुयातमार्गाः = पोडशसहस्रसरयका राजरा अनुमता भवन्ति मार्गे येपा ते तथा । तत्पदनितनीतिमार्गानुपतिन इत्यर्थः तदानारिण इति यावत् । सोलसदेवीसहस्सरणयणहिययदइया । पोडगदेशीमहस्रपरनयनहृदयदयिता -पोडशसहस्रदेवीना परनयनाना-चार लोचनाना सुन्दरीणा हृदयदयिताः हृदयवल्लभा, विशेषणमिद गासुदेशपेक्षया । ' णाणामणिकणगरयगमोत्तियप निपध, उल्मक, सारण, गज, सुमुम, दुर्मुस आदि साढातीन ३॥ करोड़ यादवकुमारों के लिये ये हृदय से अधिक प्यारे होते है । (देवीए रोहि णीए देयीए देवई य आणदरिय भावनदणकरा) देवी रोहणी के तथा देवी देवकी के आनदरूप दियभाव की ये वृद्धि करनेवाले होते हैं, देवी रोहिणी ये पलदेव की माता तथा देवी देवकी ये कृष्णकी माता है। (सोलसरायवरसहस्साणुजायमग्गा) १६ सोल हजार राजा जिनके पार मार्ग में चला करते हैं, अर्थात् जिस प्रकार वे इन्हें नीतिमार्ग का प्रद र्शन करते है उसी नीतिमार्गका ये अनुसरण करते ह, अथवा उनकी आज्ञानुसार चलते हैं। (सोलस देवीसहस्सवरणयणहिययदइया) १६ सोल हजार स्त्रियों के नयनो को और हृदयोंको ये अत्यतप्रिय होते है, यह विशेषण बासुदेवकी अपेक्षा से कहा गया जानना चाहिये । (णाणाम પ્રતિવસાબ, અનિરુદ્ધ, નિષધ, ઉમુક સાર, ગજ, સુમુખ, દુર્મુખ આદિ સાડા ત્રણ કરોડ યાદવ કુમારને તે પ્રાણથી પણ અધિક વહાલા હોય છે, "देवीए रोहिणीए देवीए देवईए य आणदहियभावनहणकरा" हेवी ! તથા દેવી દેવકીના હદયના આનદમાં તેઓ વૃદ્ધિ કરનારા હોય છે દેવી शcिell वनी माता तथा हेपा हेपी नी माता के सोलसरायर सहस्साणुजायमग्गा" १६ १२ सलमा भने मनुसरे छ, मेटले तेभना દ્વારા જે નીતિમાર્ગ તેઓ બતાવે છે, એ જ નીતિમાર્ગનું તેઓ અનુસરણ ४२ छ अथवा तेमनी माझा प्रमाणे ते या यानेछ "सोलस देवीसहस्सवरणयणहिययदेइया "१६ सा २ सीमाना नयनी तथा हत्यने तये। मत्यत प्रिय डाय छ मा विशेष पासुहेपने मनुसक्षी अपाये छ “णाणामणि
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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