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________________ ४०७ सुर्दाशनीटीका अ० ४ सू० ४ चक्रवादि वर्णनम् माण्डलिकास्थाऽपेक्षयोक्तम् । अये तु 'हिमवतसागर त धीरा भोत्तूणभरहवास' इत्युक्त तत् चक्रातिपदमाप्त्यनन्तर समस्तभरतक्षेनभोक्तृत्वापेक्षया प्रोक्तमिति योध्यत् चक्रवर्तिन एव विशिनप्टि, ' नरसीहा' नरसिंहाः नरेपु सिंहा इव शौर्या. दिमत्त्वात् ' नरवई ' नरपतय =नराणा स्वामिकत्वात् 'नरिंदा' नरेन्द्राः नरेषु इन्द्रभूतत्वात् 'नरसहा' नरटपमाराज्यधुराधरणसामर्थ्यात् 'मरुयवसभाप्पा' मरुजपभकल्पा: माना =मरुदेशोत्पन्नाः वृपमा बलिबर्दाः, तकल्पाः तत्त्समानाः ये ते तथा मरुदेगरपमाहि गरीरसम्पत्त्या बहुभारवहनसमर्या भान्तीति तैः सहोपमानम् । ' अभहि य' अभ्यधिरम्-अत्यधिक यथास्यात्तथा 'रायतेयलच्छीए दीपमाणा' राजतेजोलम्या दीप्यमानाः राजप्रतापश्रिया देदीप्य मानाः 'सोम्मा' सौम्याः शान्तस्वरूपाः 'रायरसतिलगा' राजवशतिलकाः राजकुमण्डनभूताः, तथा ' रविः मूर्यः १, 'ससि' शशी चन्द्रः २, 'सख' विशिष्ट शौर्यादि सपन्न होने के कारण नरो में सिंह की तरह होकर नरसिंह (नरवई) मनुष्यों के स्वामी होने के कारण नरो के पति (नरिंदा) नरो में इन्द्र जैसे होने के कारण नरेन्द्र (नरवसहा ) समस्त राज्य धुराके धारण करने में सामर्थ्यशाली होने के कारण मरुज वृपम जैसेमारवाड़ के पलीवर्द जैसे-मारवाड़ के बैल अपनी शरीररूपी सपत्ति से बहुत अधिक भार को वहन करने वाले होते है-इसलिये उन के साथ यह सादृश्य घटित किया है। तथा ( अभदिय रायतेयलन्छीए दीप्पमाणा ) बहुत अधिकरूप में राजलक्ष्मी से देदीप्यमान, (सोम्मा ) शांतस्वरूप और ( रायवसतिलगा) राजकुल के मडनभूत होते हैं एव जो (रविससितववरचक) रवि शशि शख चक्र इत्यादि-लक्षणो के धारण करनेवाले, अर्थात्-रवि-सूर्य शशि-चद्रमा तथा शख, श्रेष्ठचक्र શૌર્ય આદિથી યુક્ત હોવાને કારણે નરેમાં સિહ જેવા હોવાથી નરસિહ, “ नरबई " भनुष्याना स्वामी डावाने जाणे नृपति, “ नरिंदा " नरेभा छन्द्र समान डावायी नरेन्द्र, “ नरवसहा " समस्त शयधुशनु वान ४२वाने સમર્થ હોવાને કારણે નરવૃષભ અથવા મરુજવૃષભ જેવા, -મારવાડના બળદ જેવા-“મારવાડના બળદ મજબૂત હોવાને કારણે વધારે ભાર ઉપાડી શકે છે तथा तेमनी साया म२४ामणी ४२वामा मापी छे' तथा 'अब्भहियरायतेयलच्छीए दीपमाणा" सभी 43 गई पधारे हीप्यमान, " सोम्मा" शान्त ३५सीभ्य, मन" रोयवसतिलगा" २१४ानी २३मात ४२।२१, भने रे " रविससिसञ्जवरचक" " सूर्य, यन्द्र, शम य" ઈત્યાદિ લક્ષણેને ધારણ કરનારા, એટલે કે સૂર્ય ચન્દ્ર, શિખ, શ્રેષ્ઠ ચક,
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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