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________________ ३९७ सुदर्शिनी टीका म०४ सू० २ अब्रह्मनामानि तल्लक्षणनिरूपणं च काम ? जानामि ते रूप, सङ्कल्पात् फिट जायसे । न त्या सकल्पयिप्यामि, ततो मे न भविष्यसि ॥१॥ 'वाहणा पदाण' वाधना पदाना-पदानासयमस्थानाना वाधना वाधोत्पादकत्वात् ७ । 'दप्पो' दर्पः इप्सजनैराचरितत्वात् ८, मोहा मोहजननात्वेदमोहनीयकर्मोदयसम्पाघवाहा मोहस्वरूप. १, 'मणसखोभो ' मनः सक्षोभः -चित्तव्याकुलतोत्पादकत्वात् १०, 'अणिग्गहो' अनिग्रह -विषयेषु प्रवर्त्तमानस्यनाम सेवनाधिकार है ५। सकल विकल्पों से यह उत्पन्न होता है इसलिये इसका नाम सकल्प है ६ । कहा भी है-- " काम ! जानामि ते रूप, सकल्पात् किल जायसे। न त्वा सकल्पयिष्यामि, ततो मे न भविष्यसि ॥ १ ॥ हे काम ! मैं तेरे स्वरूपको जानता है, तृ निश्चयतःमानसिक सकल्प से उद्भूत होता है । अतः में जब तेरा सकल्प ही नहीं करूँगा तो फिर तू कैसे उत्पन्न होगा? ।। यह सयम के स्थानों मे बाधा का उत्पादक होता है इसलिये इसका नाम पद याधना है ७ । जो मनुष्य दृप्त-मदोन्मत्त होते है-उन्हों के द्वारा यह आचरित किया जाता है अतः इसका नाम दर्प है। यह वेदप मोहनीय कर्म के उदय से उद्भूत होता है इसलीये इममा नाम मोह है ९ । इसके निमित्त से चित्त में एक प्रकार की व्याकुलता उत्पन्न होती है इसलिये इसका नाम मनःसक्षोभ है १० । जिस समय इसका सो छ, तथा तेनु नाथ "सेवनाधिकार" छ, '६' से ५ विपाथी ते उत्पन्न थाय छ, तथा तेनु नाम " सकल्प "छे, पर छ "काम ! जानामि ते रूप, सकल्पात् किल जायसे । न त्वा सकल्पयिष्यामि, ततो मे न भविष्यसि ॥ १॥" હે કામ! હુ તારા સ્વરૂપને ઓળખું છું, તુ અવશ્ય માનસિક સંકલ્પથી જ ઉત્પન્ન થાય છે, તે હું તારે સ ૮૫ જ નહી કરૂ તે તુ ક્યાથી Grपन्न २१ ॥२॥ “” તે સયમના સ્થાનમાં મુશ્કેલીઓ પેદા કરનાર છે, તેથી તેનું નામ "पद्याधना" छ, '८' महोन्मत्त मनुष्य द्वारा १ ते सेवाय छ, तेथी तेनु " दर्प"छ, र त ३५ भाडनीय भना यथा उत्पन्न थाय छ, तथा તેનું નામ “” છે, ૧૦” તેને કારણે ચિત્તમાં એક પ્રકારની વ્યાકુળતા ઉત્પન્ન याय छ तेथी तेनु नाम “मन सक्षोभ" छ ११' न्यारे शरीरमा तेना
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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