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________________ प्राण्याकको वतः जलभ्रमस्तन भोगाःपिया ग्व 'मममाण' भ्रमन्तः 'गप्पमाण 'गुप्यन्तः व्याकुली भान्तः, उन्लन्त:-उत्पान्तः 'बहुगभास' पहपु - बहुविधा गर्भनासेपु-पशुपक्ष्यादिलक्षणेषु'पन्चोणियन प्रत्यानिटत्ता उत्पत्य निपतिताः 'पाणिय' प्राणिनो-जीनाः समुद्रपक्षे मकरादयः, समारपत्र ममारिणो यत्र तथा भूत, तथा-पधारियनसणसमावण्णरणचडमारय समाहयाऽमणुण्णवीविधाकृलिय भगफुट्टतनिट्ठरल्लोलसरजल । प्रभावितव्यमनममापनरुदितचण्डमारुतसमाइ तामनोज्ञमीचिव्याकुतितभद्स्फुटदनिप्टकल्लोलसकुलमलम्, तत्र - पधाविय' प्रधारितानि- प्रणेतस्ततोगतानि यानि 'सण' व्यसनानि क्रप्टानि तानि 'समावण्ण' समापन्नामाप्ता ये माणिन तेपा 'मण्ण' रुदितमेव 'चडमारुप' चण्डमारुतः पचण्डवायुस्तेन 'समाहय ' समाहता: परस्पर सपहिता याः 'अमगुण्ण ' अमनोज्ञा भयकरा' वीचयः दुःखपरम्परारूप तरगास्तै 'वाउलिय' व्या (भोग) विषय-भोग ही (भममाण) भ्रमण कर रहे है, (गुप्पमाणे ) व्याकुल हो रहे हैं तथा (उच्छलत ) उछल रहे है । एव इस ससार समुद्र में (पगम्भवास) मनुष्य, पशु पक्षी आदि योनि रूप नाना प्रकार के गर्भो में ससारी जीव तथा समुद्रपक्ष में मगरमच्छ आदि जलचर जीव आकर निपतित हो रहे है। (पपाविय-वसण-समावण रुण्णचडमारुयसमायाऽमुपणवीचि चाकुलियभगफुट्टतनिट्ठकल्लोलसकुलजल) तथा यह ससार समुद्र (पधाविय) इधर उधर से समाप्त (वसणसमावण्ण) अनेक व्यसनो-दुःखोंसे पीडित हुए प्राणियोंके (रुण्ण) रुदनरूप (चड मारुय) प्रचण्ड वायु से (समाय) परस्पर संघर्ष को प्राप्त हुई (अमणुण्णवीचि) अमनोज्ञ दुखों की परपरारूप तरङ्गों से (वाकुलिय) माण" अभए ४री रा छ, “गुप्पमाण" व्याण थ/ २७स , तथा " उच्छल त ' suी २ह्या छ भने ते ससा२ सासभा “बहुगम्भवास" મનુષ્ય, પશુ, પક્ષી આદિ નિરૂપ વિવિધ પ્રકારના ગર્ભોમાં પ્રાણીઓ-સસી રની અપેક્ષાએ છ તથા સમુદ્રની અપેક્ષાએ મગરમચ્છ આદિ જળચર છે આવી આવીને નિપતિત થઈ રહેલ છે એટલે કે તેમાં જન્મ લઈ રહેલ छ “पधाविय-वसण-रुण्ण-चड-मारुय-समाहयाऽमुण्णीचि-वाकुलिय-भाग-- फुट्टत-निद्र कल्लोल-सकुलजल " तथा मा ससा२ समुद्र "पर्धाविय " मी तलीथी पास “वसणसमारण्ण" मन (व्यसन) हुमाथी पीता प्राधी माना ' रुग्ण" २४न३५ " चडमारुय" प्रय वायुथी “समाय" ५२२५२ मत “ अमणुण्णवीचि" आमना सानी ५२५२२ साथी
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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