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________________ સંદ प्रश्नव्याकरणसूत्रे 1 एव शीळा : ' सणभुद एसु' व्यसनाभ्यृदयेषु हरणमुद्धय' =ज्यमनेपु = रोगाधन स्थाया राजादिकृतोपनेषु च अभ्युदयेषु = विनादादिमहोत्सवेषु 'हरणबुद्धी हरणबुद्धय 'निगन' का 'भेडिया' इति प्रसिद्धा नखधारिणः श्वापद जन्तु विशेषा ' हिरमहिया ' रुधिरमहिताः = रुधिरस्य= रुधिरपानस्य मद्द= उत्सवः रुधिरमद्द, जातो येषा ते तथा - रुधिरपणे तत्पराः, ' परे ति ' परियन्ति = पर्यटन्ति सर्वत्र भ्रमन्ति । कथ भूतास्ते इत्याह- ' नर इमज्जा-य मइक्कता ' नरपति मर्यादामतिक्रान्ता = राजाज्ञा न हिर्नर्तिनः ' संज्जणजणदुगुछिया ' सज्जनजन जुगुप्सिताः = मत्पुरुपैर्निन्दिताः 'सम्मेहिं ' स्वकर्मभिः = अदत्तादान रूपैः ' पावकम्मकारी ' पापकर्म गरिणः चीर्यादिपापकर्मकारका 'अनुभपरि याय' अशुभ परिणताच शुमपरिणाम नर्जिता 'दुक्खभागी ' दुःखभागिन' = छिद्र प्राप्तकर बात की बात में मार डालते है (वसणमुद एस) रोगा दिक अवस्थारूप तथा राजादिकृत उपद्रवकृत व्यसन के समय पर, अथवा विवाह आदि रूप महोत्सव के अवसर पर भी ये (हरणमुद्धी) अपना कार्य कर दिया करते हैं । (विगन्ध) भेडिया की रुधिर चूपने में तत्प रता रहती है ईसी प्रकार ये चोर जन भी (महिर महिया ) पर के खून चूसने में तलर रहते हुए ( परेंति ) सर्वत्र घूमते हैं । (नरवइम इकता ) राजा की आज्ञा का सदा ये उल्लघन किया करते हैं । (सज्ज णजणेदुगुछिया ) सज्जन पुरुषो की निंदा करने में इन्हें आनद मिलता है, अथवा इनके इस कर्म की सज्जन पुरुष निंदा करते हैं । ( सक मेहिं ) अदत्तादानरूप अपने कर्मो से ये (पावकम्मकारी ) पापकर्मकारी पापकर्म करने वाले वे चोर (असुभपरिणयाय) अशुभ आत्मा परिणति (6 धननु रहस्य नगीने नेतभेताभा भारी नाचे हे “वसणन्भुद ” અવસ્થામા, તથા રાજાધૃિતઉપદ્રવ રૂપ સકટને "સમયે, અથવા વિવાહ દિ મહાત્સવને પ્રસગે પણ તે द्दरणनुद्धी ” पोतानु परधन हरगुनु नृत्य य उरे छे " विगन्त्र " वरुनी प्रेम-गोटले हे प्रेम वरु सोही यूसवाने तत्पर હાય છે તેમ ચાર પણ रुहिरमहियो ” अन्यनु सोडी यूसवाने तत्पर यह ने " परे ति ” सर्वत्र भ्रमण उरे छे " नरवइमज्झाय मइकता " शब्जनी भाज्ञानु सहा उल्लघन उरे छे, " सज्जणअणे दुगुछिया " સજ્જનાની નિંદા કરવામા तेभने भन यावे छे, अथवा ते दुष्कृत्यांनी सन्मनो निहारेछे " सकभेहि " अदृत्ताहान-थोरी ३५ पोताना थी ते " पानकम्मकारी " पायट्टत्यो नाश ચારા असुभपरिणयाय " अशुल आत्मपरिवृति-लावधी युक्त भने छे 66
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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