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________________ ३०४ प्रभव्याकरण भ्रमरगुजितमिन गुञ्जित तथा निन्ति व्यन्तरळतो महा धनिः गुरुकनि पवित-विधुद्विशेषादि सपातेन च भायमानोचनिः मुदी: अत्यर्थ निहादीमतिध्वनियुक्तो निर्णोपः दूरश्रूयमाणा-अविदरदेशादपि रूपमाणः गम्भीरो धुग धुगिति शब्दश्च यत्र स तथा त 'पडिपहरुमत-जकापरससस कुहड-पिसायरुसिय - तज्जायउपसग्गसहस्ससकुल . मतिपयरुन्यानयक्षराजसप्माण्ड पिशाचरुष्टतज्जातोपसर्गसहस्रसंफल - तर मतिपथ-मतिमार्ग रुन्यानाः पथि कानां मार्गावरोध कुर्माणा ये यक्षाः राक्षसाः कृप्माण्डाः पिगाचाच सर्ने व्यन्तरविशेपास्ते च ते रुटारोपयुक्ता स्तै तानि यान्युपसर्गसहस्राणि-उपद्रवसह स्राणि तैः सकलान्याप्तो यः स तथा त 'चहणाइयभृय ' वत्पातिकभूतबहन्यौत्पातिकानि-उत्पातभवानि दुखानि भूतानि यन स तथा त 'विरइय होता है। तथा (पिउलगन्जिय गुजिय) जिसका मेघ की तरह विशाल गर्जित एव भ्रमरों के जैसा विशाल गुजित, (निग्घाय) निर्घात-भ्यन्तरों की ध्वनि, तथा (गरुयनिवडिय) विजली आदि का जो इसमें गिरना होता है उस समय निला हुआ जो अत्यन्त निहोदा प्रतिध्वनि युक्त विशेष निर्घोप ( दरसुच्चा) दर से सुनाई देने वाले (गंभीर ) गम्भीर (धुगधुगति ) 'धुग युग' ऐसा शब्द, ये (सह) शब्द हैं जिसमें, तथा (पडिपहरुभत-जक्ख-रक्खस-क्रुहड-पिसायरुसिय-तजायउवसग्गसहस्ससकुल) जो रुष्ट होकर पथिको के माग का अवरोध करने वाले यक्ष, राक्षस, कूष्माण्ड (व्यन्तरविशेषदेव) एव पिशाचों के हजारों उपसर्गों से सदा व्याप्त रहता है (बहूप्पाइय भूय) तथा जिसमें जीवो को अनेक उत्पातजन्य दुःखों का साम्हना तथा “विउलगज्जियगुजिय" र मेघना वा माटी ना रे छ भने प्रम। रेवा वि गुज२१ ४२ छ, “निग्घाय" निघldव्यन्तन। भापनि तथा “गरुयनिवडिय" पीजी मालतमा ५ त्यारे तमाथी नीता निर्हादी-प्रतिध्वनि युत निषि, " दरसुचत " रथी सल तो “गभीर " गली "धुगधुगति " " धुगधुश" व मावार, माई "सह " शहरमा समाय छे तथा “ पडिपहरुमत-जक्ख-रक्खस-कुहरु -पिसाय-रुसिय-तज्जाय उवसग्गसहस्ससकुल " २ २८ थान भुसाशना ભાગને અવરોધ કરનારા યક્ષ, રાક્ષસ, કુષ્માડ, (વ્યન્તર વિશેષ દેવ) અન્ય पिशयन SM साथी सहा व्यास २२ छ, “बहुप्पाइयभूय" तथा मा वान मने Sund न्यानो सामना ४२ ५४ छ, “ विरइय
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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