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________________ -Remement २८४ प्रश्नध्याकरण जन इलीभी.-द्विधामार वागविशः महरणे-गवान करिव 'मिलिमिलित। इति चाकविक्ययुक्तःसिप्पमाणः भटेनिपात्यमानः मरियमाणैरित्ययः, पुन कीदृशैः खड्गादिशस्त्र. ? विद्युदुज्ज्वला विधुतद्विद्योतमान विरचित-कृत समप्रभ% स्वदशमकाशयुक्त नमस्तल यत्र स तथा तस्मिन् , तया' फुडपारणे' स्फुटमहरणे स्फुटानि-पप्टानि प्रहरणानि शस्त्राणि यस्मिन् स तथा तम्मिन । ' महारणसम्व भेरिवरतूरपउरपडपडहाहपनिनायगमीरणदियपरतुभियपिउल्योमे ' महार णशगभेरिनरतूर्यमचुरपदुपटहाहतनिनादगम्भीरनन्दितमक्षुभितपिपुरघोपे = तत्र महारणे महायुद्धे ये शशाम्-प्रतीता मेर्यःरणमेयः परतूांगियानादित्राणि तानि च मचुराणि-प्रभूतानि पनि स्पष्टध्वनीनि च पटहाथ-' ढोल ' इति प्रसि द्धास्तेपामाहतानाधादिताना निनादेन-शब्देन गम्भीरेण नन्दिता हर्पिताः वीराः फिर भी सग्राम का वर्णन करते है-इली पहरण ' इत्यादि । टीकार्थ-(इली ) दोनों तरफ जिनपर धार निकल रहि है ऐसे दुधारे (पहरण ) खगादि अनेक शस्त्र जो (मिलिमिलित) अत्यन्त चमकीले हैं और (खिप्पत ) शत्रुओं पर फेंके जाते समय (विज्जु ज्जल) विजली जैसे चमकते हैं, ऐसे शस्त्रों ने (चिरडयसमप्पदनह तले ) नभस्नल को अपने सामान प्रकाश वाला बना दिया है अर्थात् जो लपलपाते हुए अति तीक्ष्ण चमकीले शस्त्रों से आकाशमण्डल चम कीला बन रहा है ऐसे सग्राम में (फुडपररणे) तया जिसमें शल दिखलाई दे रहे हैं तथा जो ( महारणे ) महासग्राम में बजन वाले (मख ) शखों से, (भेरी ) रणभेरियों से (वरतरपउर। स्पष्ट वनिसपन्न प्रधान २ तूर्य-वादियोसे.(पडपडहायनिनायगभीर) घजते हुए ढोलो के गभीर शब्दों से ( णदिय) हर्षित बने हुए जोशाल ७ पा सूत्रा२ सयाम वर्णन २-इली पहरण " त्यात टीडा--"इलो"भन्ने त२३२२ धार छ तेवा मेधारा 'पहरण' 41 वगेरे मन शस्त्री "मिलिमिलित” भतिशय यता छ, भने "खिप्पत" सनुमा त२५ ३४ामा मावे त्यारे “ विज्जुज्जल " विजी २१॥ यम छ, मेवा शस्त्राम "विरइयसमप्पह्नहतले " मोशन पोताना २७ प्रशित मनापी वधु છે, એટલે કે જે ચકચકિત અતિ તીણ ચળકતા શસ્ત્રોથી આકાશ મડળ ચળ तु अनी २घु छ सेवा सयाममा “फुडपहरणे" तथा सभा शखा न०४२ ५७ छ तथा रे " महारण " भडास याममा पासता " सख" शमाथी, " भेरी" २गुलेशमाथी “ वरतूरपउर" - निवाजाभुज्य भुज्य तूर्य - नित्राथी, “पडुपडहायनिनायगभीरे " पाnau ढोताना मलार
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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