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________________ सुशिनी टीका अ २ ० १२ मृपावादीनां जीवघातकवचननिरूपणम् २२३ पापकर्मसमाचरणम् , तमा 'अपवखदे' आस्कन्दान् सैन्यशिपिरादिभिराक्रमणेन. परनलमर्दनानि धाटीर्मकरणानि या गामघायण' ग्रामघातन यामादिनाशन 'वणदहणतडागभेयणए' बनदहन-तडाग-भेदनानि-वनज्वालनानि जलाशय घसनानि च 'धुद्धिविसयवसीकरणाइयाइ' बुद्धिविपयरशीकरणादिकानि परस्य बुद्धेर्विपयस्य च गन्दादेः वशीकरणानि मन्त्रादिप्रयोगेणु स्वायत्तीकरणानि 'भय मरणकिलेमुव्वेगजणयाट' भयमरणक्लेशोद्वेगजनमानि भय च मरण च क्लेशश्च शारीरिकउद्वेगश्च हार्दिक दुःखमित्येतेषा जनकानि तथा 'भार बहसमिलिटभावमरिणाणि ' भाषबहुसक्रुिटमलिनानि-भावेन अयवसायेन बहुसक्लिप्टेन अतिशयपरसन्तापजनकेन मलिनानिक्लुपितानि तथा 'भूयधाओवधाइयाड' भूतघातोपघातकानि-भृताना माणिनां घातः साक्षात् हनन उपघातश्च-परम्परयाइनन तो येषु तानि भूतातोपातकानि पूर्वोक्तानि 'सच्चाणिवि ' सत्याकरने को, तथा ( अवक्खदे ) सैन्य शिविर आदिके द्वारा आक्रमण करके पर के वलको मर्दन करने रूप कर्म को अपना धाडपाड़ने रूप डकैतीकर्म को, (गामायण ) ग्रामघातकरूपकुकृत्य को, (वणदहणतडागभेयणए) जगलो मे आग लगाने रूप, तथा जलाशयों को ध्वस करने रूप दुष्कृत्यों को, (घुद्धिविमयवसीकरणमाइयाइ) मत्रादिकों के प्रयोग से पर की घुद्धि को, एव शब्दादिक पांचो इन्द्रियों के विषयोकों स्ववश करने रूप अकृत्यों को कोई पूछे अथवा न पूछे तो भी घताया करते हैं, तथा (भयमरणकिलेसुव्वेगजणयाइ ) भय, मरण, क्लेश, उद्वेग, इनके उत्पादक असत्यवचनों को, तथा (भावरसकिलिमलिपाणि ) अत्यत सक्लिष्ट अतिशयरूपमे पर को सतापजनक, ऐसे अध्यवसाय से मलिन हुए तथा (भूयवाओवघाइयाइ)प्राणियों के साक्षात् આદિ દ્વારા આક્રમણ કરીને અન્યના બળનું મર્દન કરવારૂપ કર્મ તથા ધાડ पापानी ने, “गामगायण" ॥ला३५ हुत्यने, “वणदहणतडाग भेयणए " Part PNRN3ाना तय शयन लेडी नात्याने, " बुद्धिविसयवसीकरणमाइयाइ" भनि प्रयोगथा पा२४ानी पुद्धिने, भने, શબ્દાદિક પાચેઈન્દ્રિયના વિષયેને પિતાને વશ કરી લેવા રૂપ દુષ્કૃત્યને કઈ पूछ अथवा न पूछे ते! ५ ते भृपावादी मताव्या ४२ छ, तथा “ भय मरण किलेसुव्वेगजणयाइ" लय भए, देश, द्वेग मापन ४२ना२ असत्य पयनी, तथा " भावबहुसकिल्मिलिणाणि" सत्यत ससिट, मन्यने न्मतिशय सतान मेवा अध्यवसायथी भलिन थयेस तथा “ भूयघाओव
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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