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________________ २०६ प्रध्याकरण उवहणंता-मित्तफलत्ताइ सेवइ । अयपि लुत्तधम्मो । इमो वि वीसंभघायओ, पापकम्मकारी अगम्मगामी । अयं दुरप्पा वहुएसु य पातगेस जुत्तो ति । एव जपंति मच्छरी भदगे वा गुणकित्तिनेहपरलोगनिप्पिवासा। एव एए अलि. यवयणदक्खा परदोसुप्पायण संसत्ता वेटतिअखडय वीएणं अप्पाणं कम्मवधगेण मुहरी असमिक्खियप्पलावी ॥सूजा। टीका-अवरे अपरे अन्ये केचित् 'अहम्माओ' अधर्मत असत्यवचनरूपमधर्म मेव स्वीकृत्य 'रायदुह' राजदुष्ट नीतिविरुद्धम्, 'अभक्खाण' अभ्याख्या नम् असत्यदोपारोपण ' अलिय ' अलीक 'मणति 'अकृतमपि कार्यकल्पयित्वा जनसमक्षे कथयन्ति । कयमित्याह-'चोरोत्ति' इत्यादिना-'अचोरियं करत' औचार्य कुर्वन्तम्-अचोरयन्त जन प्रति 'चोरोत्ति' चोर इति कथयन्ति । 'एमेव' और भी मनुष्य जिस प्रकार असत्य भापण करते हे उसीको दिख लाते हैं-' अवरे अम्माओ' इत्यादि । टीकार्थ-(अवरे ) कितनेक मनुष्य (अहम्माओ ) असत्य वचनरूप अधर्म को ही स्वीकार करके (रायदुट्ठ) नीति विरुद्ध (अभक्खाण) असत्य दोपारोपणरूप (अलिय) अलीक वचन को (भणति) करते हैं, नहीं किये गये भी कार्य को उसमे कल्पित करें जन समक्ष में कर दिया करते है कि ( अचोरिय करेत चोरोत्ति) चोरी नहीं करने वाले को भी ' यह चोर है। ऐसा कर देते है, अर्थात जिसने कभी भी चोरी नहीं की है-ऐसे पुरुष को भी चोर देते है, कह तथा ( एमेव ) इसी બીજા મનુષ્ય પણ જે પ્રકારે અસત્ય બોલે છે તે સૂત્રકાર બતાવે છે"अवरे अहम्माओ" त्यादि थ-"अवरे" उals माणुसी' 'अहम्माओ" असत्य वचन३५ भने। ११ वीर गन "रायदुव" नीतिवि३६ " अब्भक्साण " असत्य होगा। ३५ " अलिय " मी ययन। “भणति" ४ छ, न उसयस नी पy पन। उसने सोअनी समक्ष ४ह्या ४रे छ भ-"अचोरिय करेत चोरोत्ति" ચોરી ન કરનારને પણ “આ ચોર છે” એવું કહે છે એટલે કે જેણે કદિ पायाश डाय तथा पुरुषने ५ यार तरी शोभा छ, तथा " "
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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