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________________ १८५ सुदर्शिनीटीका अ २ सू ५ नास्तिकचादिमतदिनिरूपणम् नत्थि कि वन नेग्इयतिरिक्खमणुयजोणी, न देवलोगो वा अस्थि सिद्धिगमणं, अम्मापियरो नत्थि, नवि अस्थि पुरिसकारो, पच्चक्खाणमवि नत्थि, नवि अस्थि कालमच्चू य, अरिहंता वही वलदेवा वासुदेवा नत्थि, नेवत्थि केइ रिसओ, धम्माधम्मफलं विन अस्थि कि चि बहुच वा थोवं वा तम्हा एवं जाणिऊणं जहा सुवहु इंदियाणुकूलेषु सव्वविसएसु वहेह नत्थिकाइ किरिया वा एवं भणति नत्थिकवाइणो वाम लोगवाई | सू० ॥५॥ टीका -- यस्मात् आत्माऽपि नास्ति, शुभाशुभकर्माणि तत्फलान्यपि च न सन्ति ' तम्हा ' तस्मात् ' दाणनयपोसहण ' दाननतपोपवानां = तत्र दानम् = अभयदानपानदानादिकम् 'जय' नवानि = स्थूलप्राणातिपातविरमणादीनि पोपधः = पोष = वर्मस्य पुष्टिं धत्ते - करोतीति पोपधः = अष्टमी चतुर्दशीपूर्णिमामात्रास्यापदिनाऽनुष्ठेय जाहारादिपरित्याग पूर्वकोनत विशेषः, उक्त च आहार तनुसत्काराऽनह्मसावध कर्मणाम् । त्याग पर्वचतुष्टया तद्विदुः पौपधनतम् ॥ फिर भी - ' तम्हा दाणवयपोसहाण ' इत्यादि । टीकार्य - - आत्मा शुभाशुभकर्म और इनके फल ये सब कुछ भी नहीं है (तम्हा ) इसलिये ( दाणवयपोसहाण ) दान - अभयदान. सुपात्रदान आदि, व्रत-स्थूलप्राणातिपात विरमण आदि, ( पोसह ) पोवध - अष्टमी चतुर्दशी, पूर्णिमा एव अमावस्या इन पर्व दिनों में आहार आदि को परित्याग पूर्वक अनुष्ठेयव्रत विशेष, कहा भी है वणी ---" तम्हा दाणनयपोसहाण 'त्याहि रीडार्थ - मात्मा शुलाल उर्भ भने तेभनाइ ते मधुय नथी " तम्हा तेथी " दाणत्रयपोसाण " हान- अलयहान, सुपात्राहान आदि, व्रत - आशाति यात विरभय आदि " पोसह " औषध-माहभ, यौहश, पूनम, अभास माहि આહાર આદિના પરિત્યાગ પૂર્વનુ એક અનુષ્ઠાન કહ્યુ છે કે "" आहार, तनुसत्कारा-ऽब्रह्म - सावद्यकर्मणाम् । त्यागः पचतुष्टयां तद्विदु पौषधनतम् ॥ १" *प्र० २४ ܕ
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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