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________________ - - प्रभव्याकरण समाधाः । 'भयाय-अन्येपा भयोत्पादनाय ' व्याघ्र समागतः' इतिरीत्या मृपाबादः अथवा भयान्च 'इस्सहिया य' हाम्यार्थिकाः, अथा हास्यार्याय च% हास्य कर्तुमपि तथा वदन्ति 'सक्ती' साक्षिणासाक्षिभूतान्यायालयादा 'चोरा' चौरा-निग्रहादौ 'चारभडा' चारभटा=तन चाराः गूढपुरुषाः, भटा: योगाः, पण करते है । इसी तरह मुग्मादिक जो जीव होते है कि जिन्हें प्राणवध के प्रकरण में २० वे सूत्र में करा गया है वे भी असत्यभाषण करते हैं । कोई धन के लिये, कोई धर्म के लिये, कोई इन्द्रियों के भोगों के निमित्त काम के लिये, और कोई २ अर्थ, धर्म और काम इन तीनों के लिये असत्यभापण करते है । ( भयाय) कितनेक कितनेक जीव ऐसे भी होते है जो दूसरों को भय उत्पन्न करने के अभिप्राय से असत्यभापण कर दिया करते हैं । " भयाय " की सस्कृत छाया"भयाच" ऐसी भी होती है-इसका तात्पर्य तब ऐसा होगा कि कितनेक जीव भय से भी असत्यभापण कर दिया करते हैं । (हस्सट्टियाय) कितनेक जीव ऐसे भी होते हैं जो हँसी मजाक मे असत्यभापण कर देते है, अथवा दूसरो की हँसी उडाने के अभिप्राय से असत्यभापण करने लगते हैं। (सक्खी) जो न्यायालय-कचहरी आदि में दसरों की साक्षी देते हैं वे भी असत्यभाषण करते हैं । (चोरा) चोरी करने वाले जो पुरुष होते हैं वे निग्रह आदि अवस्था के उपस्थित होने पर असत्यभापण करते हैं। જે જીવે હોય છે, જેમનું પ્રાણવધના ૨૦મા પ્રકરણમાં વર્ણન કરવામા આવ્યું છે, તે છે પણ અસત્ય બેલે છે એટલે કે કેટલાક મુગ્ધ–મહાધીન વૃત્તિ વાળા અસત્ય બેલે છે કેટલાક ફોધ, લોભ અને મેહ એ ત્રણેને વશ થઈને અસત્ય બોલે છે કેટલાક લેકે ધનને માટે, કેટલાક ધર્મને માટે, કેઈ ઇન્દ્રિચેના ભેગેને નિમિત્ત, અને કઈ કઈ લેકે અર્થ, ધર્મ અને કામ, એ ત્રણેને निमित्त मसत्य मा छे "भयाय" उटमा मेवा ७ प डाय छ २ भीतने मय पभावाने भाटे. असत्य मास छ “ भयाय " नी सस्त छाया "भयाच्च" ५५ थाय छे त्यारे तेन। अर्थ मेवा थायटसा । लयने ४२ ५४ असत्य माले छ “ हस्सद्विया य" talalai मेवा પણ હોય છે કે જેઓ મજાક-મશ્કરીમાં પ, અસત્ય બોલી નાખે છે, અથવા भीजतनी भगत ४२वाने निमित्त अन्नत्य मोसा भजे "सक्सी" न्याय! हाय माहिमा पानी साक्षी मापना। ५५ असत्य माले छ “ चोरा" ચારી કરનારા લેકે, જેલમાં જવાને પ્રસ ગ ઉપસ્થિત થતા અસત્ય લે છે
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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