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________________ १०० प्रश्नष्णकरणसूत्र 'उकखणण' उत्खनन-कुदालादिमि पृथिव्यादीनां पिदारणम् , 'उपयण ' उक्त थन वृक्षादीना त्वचापनयन, ‘पयण' पचन 'कोट्टण' कुटन-प्रसिद्ध, 'पीसण' पेपण-घरट्टादौ चूर्णन, 'पिट्टण ' पिट्टन-ताडन, 'मज्जण' भजन-भ्राष्ट्रे पचन, 'गालण' गालन-लतागुलमादि रस निगारणम् , 'मामोडण 'आमोटनम् शाखा दीना मोटन, 'सडण' शटन-स्वयमेव विकृतमवन, 'फुडग' स्फुटन-स्वय द्विधा भवन, 'भनण' भजन-टन-रोटन पा, 'छयण' छेदन-कुठारादिना द्विधा करण, 'तन्छण' तक्षणस्यादिभिश्छोल्न, 'विलुपण ' विलुचनम्लोमादेखि से पृथिवी आदि का विदारण करना-सोदना, इसका नाम (उपखणण) उत्खनन है । वृक्षादिकों की छाल निकालना इसका नाम (उपत्यण) उत्तयन है । पकानेका नाम (पयण) पचन है । कूटने का नाम (कोहण) कुटन है । घरह आदि में गेह आदि का पीसना इसका नाम (पीसण) पेपण है। ताडक परना इसका नाम (पिण) पिटन है। भाड में भू जना इसका नाम (भज्जण) भर्जन है। लता गुल्म आदि का रस निकालना इसका नाम ( गालण) गालन है । शाखादिक का मरोडना इसका नाम (आमोडण ) आमोटन है। अपने आप विकृत हो जाना इसका नाम ( सडण ) शटन है । स्वतः दो टुकडे हो जाना (फुडण) स्फुटन है । तूटना या किसी से तोड लिया जाना इसका नाम (भजण) भजन है। कुठार आदि से काट दिया जाना, इसका नाम (छेयण) छेदन है । वसूला आदि से छोलना इसको नाम (तच्छण) तक्षण है। रोम आदि की तरह पत्रादिक का दूर करना इसका नाम ( विलुचण) જી તરીકે ઉત્પન્ન થઈને ઉખનન આદિ ૮ ભગવે છે કદાળી આદિ 43 पृथिवी साहिन माहवानी याने " उत्सणण" मनन छ वृक्षा हिनी छ तापी ते याने " उकस्थण " Gथन छ राघवानी यिनि "पयण " पयन ४९ टवाना-पानी ठियाने " कोण" घट्टन ४९ छ घटी माहिमा ५७ महिने पानी याने "पीसण" पेष । छे भा२ भारवानी याने " पिट्टण " पिट्टन ४ छ महीमा २४वानी जियाने "भज्जण" wri-४ सता, शुभ माहिभाथी २१. पानी याने "गालण" सन ४९ छ । माहिर भवानी याने " आमोडण" भारत के मापामा५ विकृत पानी याने "सडण" शन छ नत मे ४७ ७ पानी याने "फुडण" टन 3 तत पानी भी पानी याने " भजण " 18 माहिया जापानी याने "छयण" छेड्न ४ छे पासा माहिया छापानी यान
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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